सरकार के छिटक देने के बाद खटखटा रहे है विपक्षियों का दरवाजा
भ्रष्टाचार के खिलाफ जनमानस के गुस्से को जन आंदोलन का आकार देने वाले अन्ना हजारे के लिए कभी जो नेता छूत के मरीज जैसे होते थे आज वही नेता उन्हें देश के कर्ण धार लगने लगे हैं। अन्ना का मन परिवर्तन ऐसा हुआ कि भ्रष्टतंत्र के खिलाफ जानवरों का चारा तक डकार लेने वाले लालू और कर्नाटक के खनन माफिया रेड्डी बंधुओं को आश्रय देने वाली भाजपा तक के दरवाजे पर मत्था टेकने से अब उन्हें कोई परहेज नहीं रह गया।
भ्रष्टाचार के खिलाफ जंतर-मंतर के मैदान पर छिड़ी महाभारत का वह मंजर भला कोई कैसे भुला सकता है, जब आंदोलन को समर्थन देने आयीं भाजपा की फायर ब्रांड नेता उमा भारती को टीम अन्ना ने मंच तक भी पहुंचने नहीं दिया था। अपनी टीम का बचाव करते हुए उस वक्त अन्ना ने कहा था कि वह नहीं चाहते कि भ्रष्टाचार की वैतरणी के आधार राजनेता इस पवित्र यज्ञ को अपनी उपस्थिति से अपवित्र कर भग्न करें। टीम अन्ना ने उस वक्त राजनेतओं को देश के लिए कोढ़ करार दिया था।
जंतर-मंतर पर हुए जमावड़े को अभी ज्यादा वक्त नहीं बीता लेकिन इस छोटे से समय में न सिर्फ अन्ना हजारे बल्कि उनकी पूरी टीम का हृदय परिवर्तन होता नजर आ रहा है। जो राजनेता भ्रष्टाचार का समंदर लग रहे थे और आंदोलन के लिए अछूत थे, अब टीम अन्ना उन्ही के दरवाजों पर मत्था टेकती नजर आ रही है। यह मात्र संयोग नहीं बल्कि कांग्रेस के दरकिनार कर देने के बाद असफल होने का वह भय है जिससे डरकर कथित सिविल सोसायटी के पंच उन राजनीतिक अछूतों को लगे लगाने के लिए मजबूर हुए जिन्हें वह अपने नजदीक भी फटकने देना नहीं चाहते थे।
उमा भारती की छवि भले ही अक्रामक और उग्र हिन्दूवादी नेता की रही हो लेकिन उनके ऊपर कोई आर्थिक हेराफेरी का मामला दर्ज नहीं है, लेकिन वहीं दूसरी ओर लालू प्रसाद यादव 19 हजार करोड़ के चाराघोटाले के आरोपी हैं। सिर्फ लालू ही क्यों कर्नाटक के खनन माफिया रेड्डी बंधुओं की आश्रय दाता भारतीय जनता पार्टी, कर्नाटक की येदुरप्पा सरकार को तो दांव पर लगाने को तैयार है लेकिन रेड्डी बंधुओं के खिलाफ वहां मुंह खोलने की किसी की हिम्मत नहीं। टीम अन्ना उमा से तो दूरी बरकरार रखती है लेकिन हार के डर से उन्हीं लोगों के दरवाजे पर दस्तक देने पहुंच जाती है, जिन लोगों के खिलाफ वह जंग का ढ़िंढोरा पीट रही है।
अन्ना को यदि जाना ही था तो वह जनता के बीच जाते। शहर-शहर गली-गली गांधी की तरह अलख जगाते। लोगों को जागरुक करते। भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग में शामिल होनी की शपथ दिलाते और पहले की तरह इस बार भी नेताओं को अछूत ही रहने देते, तो निश्चित एक बार फिर उनकी यह जंग आम आदमी की जंग बन जाती। लेकिन अब लगता है कांग्रेस का हाथ जबसे टीम अन्ना के साथ नहीं रहा तो अपनी राह का अंधेरा मिटाने के लिए टीम अन्ना को न सिर्फ लाइनटेन थामने में कोई परहेज रह गया है और न कर्नाटक की किचड़ में खिले कमल से एतराज। लगता है सिविल सोसाइटी के लिए जनता अभी अनसिविलाइज्ड ही है।
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