• चापलूसी नामा....

    मुझे अच्छे से पता है कि मैं जो लिखने जा रहा हूं उसे आप लोग इसी नाम से पुकारने वाले हो.... लेकिन मैं फिर भी लिखूंगा ... क्योंकि ये मेरे साथ गुजरा सच है.... आलोक तोमर .... जी हां ये वो नाम है जो पत्रकारिता की कीचड़ भरी गलियों में अक्सर विवाद का विषय बन जाता है... ये महाशय तो खुले आम कीचड़ लपेटने का दम भरते हैं... और दम है भी सच को सच कहने का... लेकिन वो लोग जो इस गली में महल बनाने का सपना पाले हैं ... या बना भी रहे हैं .... कृत्रिम इत्र लगाये सफेद कपड़े पहने... खुद को पाक साफ साबित करने में जुटे रहते हैं .... उन्हें तोमर साहब बर्दास्त नहीं .... और यहीं से शुरू हो जाती है तू-तू मैं-मैं।
    मैं जब से दिल्ली की तंग गलियों में बसा हूं तब से ये सब देख रहा हूं .... कोई ज्यादा नहीं ढ़ाई साल ही गुजरा है अभी... लेकिन इस तू-तू मैं-मैं में शामिल होने से मैं खुद को अब नहीं रोक पा रहा... वजह भी है, ये वजह है आलोक तोमर जी के साथ काम करना. कोई ज्यादा नहीं सीएनईबी के आखिरी दिनों में मुझे उनके दर्शन लाभ मिले... मेरे दिमांग में भी आया ... साला कतई खड़ूस आदमी है... सिगरेट पीता है.. पंचायत करता है... चार गलतियां बताता है और निकल लेता है...काम खाक नहीं करता... पैसा इतना लेता है कि हम चार लोगों की तनख्वाह भी आसानी से उसमें समा जाये.... बुढ़ापा आ गया लेकिन टाइपिंग तक नहीं सीख पाया... ऊपरे रौब और झाड़ता है....काहे का सम्पादक वे..... वहीं हम लोग दिन भर खटते रहते हैं...गालियां खाते हैं ... मिलता धेला भर भी नहीं है....लगता है लाला का दिमांग खराब हो गया है..... आदि-आदि. दो तीन महीने तक हमने इनकी आवाज सिर्फ और सिर्फ पंचायतों में ही सुनीं थी.... लेकिन एक दिन अचानक मुझे अपने कंधों पर भारी भरकम बोझ महसूस हुआ... मुडके देखा तो आलोक जी थे.. कान में बुद-बुदाये... जिस शो के लिए तुम लिखते हो.... पैकेज कटाते हो.... रन बनाते हो... और गेस्ट बुलाते हो.... फिर पीसीआर में चीखते चिल्लाते हो..... वो शो कोई और नहीं तुम्हारा हैड ऑफ द फेमिली यानि राहुल देव जी एंकर करते हैं... एक पल को तो लगा बेटा गयी नौकरी..... (उन दिनों आसार भी कुछ ऐसे ही बन गये थे... जिस बच्चे को (प्रोग्राम) को मैने पैदा किया था, अपने खून पसीने से पाल पोश कर बड़ा किया था... उस पर दूसरे लोग अधिकार जमाते और बिगाड़ते नजर आ रहे थे....) लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ... मैं सीट से खड़े हुए बिना टकटकी लगाये उन्हें देख रहा था... और वो एक हाथ डेस्क पर और एक हाथ मेरे कमजोर कंधों पर रखे ... मुझे कुछ समझाने की कोशिश कर रहे थे.... एक पल रुक कर फिर बोले.,., और ऐसा बोले कि मेरी जिंदगी ही बदल गयी.... बोले जो अब तक तुमने किया वो... देशकाल और परिस्थितियों के हिसाब से सही था... लेकिन अब तुम्हें सोचना होगा कि सीईओ का प्रोग्राम और गेस्ट... भी सीईओ के लेबल के होने चाहिए... स्क्रिप्ट ठीक है ... थोड़ा ज्यादा खेलते हो कम करो... और जनाब निकल लिये हुक्का जलाने ..... मेरे दिमांग के सारे फ्यूज ही उड़ गये उस वक्त... मुझे लगा कि बड़े भाई पंकज शुक्ला जी की लाबिंग बेकार गयी.... (वो मेरी तनख्वाह और पद में इजाफा देखना चाहते थे).... लगता है आउटपुट वाले इसे बुरा मान गये.... फिर मुझसे तो राहुल देव जी भी कह चुके थे तुम्हारा कुछ करते हैं.... सिगरेट पर सिगरेट पी... चाय पी ... तमाम लोगों को गरियाया.... लेकिन दिमांग की बत्ती फिर भी न जला पाया..... निर्देशानुसार काम की औकात बढ़ाता रहा... पीछे से धूआं निकलता रहा फिर भी लेबल के लोगों को बुलाने के लिए फोन पर मुस्कुराता रहा.... जिस काम(धांसू लिखने) के लिए मैं सीएनईबी गया था... वो काम धीरे धीरे मुझसे छिन गया (उस पर तथाकथित बड़े घरानों से आये लोगों ने ..... ) और में देखते ही देखते जी हजूरी करने लगा... बड़े बड़े लोगों को बुलाने के लिए मैं हर वक्त फोन पर उनका न जाने क्या क्या साधता रहता.... लोग आये भी .. लेबल बना भी... लेकिन मैं अपनी संतान को बेदर्द दुनियां की ठोकरों में छोड़कर अचानक सीएनईबी को आखिरी सलाम कह आया... राहुल देव जी ने बहुत समझाया गलती कर रहे हो .... पहले कोई नौकरी तलाश लो... फिर छोड़ देना... वो मुझे पहचान गये... बोले जितने तुम मूड़ी हो इस पेशे में नहीं चलेगा... ये सब कलाकारों के साथ ही रहे तो अच्छा है.... तुम्हें आगे बढ़ना है.... मूड़ को मारना पड़ेगा.... उस वक्त कुछ सुनाई न दिया और लगा बुड्ढा भाषण दे रहा है... क्षमा कीजियेगा राहुल सर.. यही सच है... नीचे उतरा तो फिर आलोक जी को पंचायत लड़ाते ... धूंए के छल्ले बनाते देखा.... लगा ये ही वो आदमी है जिसने मेरी नौकरी खायी... बात करता है चंबल के पानी की लेकिन सबसे पहले चंबल का ही पानी(मुझे) पी गया....बाहर आकर दर्जनों सिगरेट पीं चाय पी,,,, जितनी बार धूंए के छल्ले बने उतनी बार .... आलोक जी को गालियां दीं.... इन सबके बावजूद में बड़े भाई पंकज शुक्ला जी से नहीं मिला सिर्फ इसलिए क्योंकि वो आलोक जी की बड़ी इज्जत करते थे...मुझे लगा कि कहीं वो मेरी हरकत का बुरा ना मानें.... और वो जो मेरे लिए नहीं करा सके थे उसका उन्हें कहीं अफसोस न हो..... लेकिन दिन गुजरे-फिर महीने भी और आज सीएनईबी छोड़ने के आठ महीने बाद.... जब में नरेन्द्र मोदी जैसे खड़ूस राजनेता, किसी से आसानी से न मिलने वाले पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल, बड़ी जल्दी बुरा मानने वाले अमर सिंह ही क्यों पाकिस्तानी-अमेरिकी-नेपाली सहित तमाम दिग्गज पत्रकारों और राजनेतओं से फोन पर हंसता, मजाक करता बोलता-बतलाता हूं (एक चीज और मेरा अंग्रेजी में हाथ तंग है...) तो आनायास ही आलोक तोमर जी की याद आ जाती है... उनके लिए गाली तो न जाने कब की गायब हो गयी.... दुआ में ही हाथ उठते हैं .... क्योंकि पांच छह महीने में उनकी छह मिनट की बात ने मेरा लेबल न जाने कब बढ़ा दिया मुझे पता ही नहीं चला.... काश में उनसे रोज पंचायत लड़ाता.... छल्ले बनाता.... तो जरूर कहता.... कीचड़ भरी गलियों में रहने वाले सफेद पोश लोगो सेंट छिड़क लो ... मैने भी कीचड़ लपेट रखी है...आलोक जी से मिलो तो तुम भी कीचड़ लपेट लोगे.... दूर रहकर तो गालियां ही दोगे इत्र ही छिड़कोगे.......
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