डॉ विनायक सेन ... राजद्रोही... आरोप माओवादियों तक संदेश पहुंचाना..... वो माओवादी जिन्हें हमारे देश का गृहमंत्री अपने ही बच्चे बताता है.....पुलिस जिनके खिलाफ हथियार उठाने से इंकार करती है... समाजसेवी जिनकी वकालत में झंडे उठाते हैं..... जिन्होंने हथियार उठाये हैं सिस्टम के खिलाफ......उस सिस्टम के खिलाफ जिसमें जनता का पैसा डकारना सबसे बड़ा धरम-करम, मजहब और जो भी बोलिये वो सब कुछ है..... मतलब ये कि सत्ता को चुनौती देने वाले वो लोग जो जनता के मसीहा होने का स्वांगरच... उसी जनता की गर्दन रेतते हैं........वहीं दूसरी ओर जनता की गाढ़ी कमाई को खुलेआम लूटने वाले.......रहीसों के मुताबिक सरकारी योजनाओं में रद्दोबदल करवाने वाले..... गैंहूं से लेकर चारा, ताबूत, सीमेंट, ही नहीं पूरा का पूरा स्टेडियम और पुल तक खा जाने वाले....इतना ही नहीं मंत्रियों की कुर्सियां तक बेचने वाले सफेद पोश.... जिनके माथे कालाहांडी से लेकर कश्मीर तक का खून लगा है.. ...देश ही नहीं जनता के साथ गद्दारी करने वाले ... देशद्रोही.... जी हां देश द्रोही.....नाम ...नाम मत पूछिये.... नेता....कॉपोरेट दलाल...सरकारी अफसर....पुलिस....कानून कौन नहीं शामिल है इस देशद्रोहियों की लिस्ट में .....एक जनता को छोड़....लगता है वो बेचारी सिर्फ मरने के लिए ही बनी है.....बाकी कौन नहीं है देशद्रोही....हम पत्रकार....ईमानदारी के ठेकेदार ....न जाने कितने खून के धब्बे लगे हैं हमारे गिरेवान पर भी.... गांधी और गणेश शंकर विद्यार्थी के पोस्टर चिपका ...टाटा-बिडला या फिर किसी अग्रवाल-गुप्ता की तिजोरी भरने में जुटे हैं...यहां तक भी ठीक था ....लेकिन हद तो तब हो गयी जब कोठे के दलाल की तरह हम मीडिया वालों ने अपने ईमान की भी बोली लगा दी......शायद इतने सब के बाद नाम जानने की न तो जरूरत बची है और ना ही राजद्रोही और देश द्रोही के बीच का फर्क बताने की.....
माओवादियों का समर्थन किसी भी कीमत पर नहीं किया जा सकता ....क्योंकि कश्मीर को लाल करने वालों और माओ के इन लालों में रत्ती भर भी फर्क नहीं.....रही बात राजद्रोह की तो हमें फक्र है विनायक सेन पर ....कि उन्होंने सत्ता के खिलाफ आवाज बुलंद की और उन मासूमों को जो खून की होली खेल रहे थे रास्ते पर लाने की कोशिश की.... कम से कम वो देशद्रोही तो नहीं......हां वो देशद्रोही नहीं .......
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