

मोहम्मद के.के. ने साथी अधिकारियों के साथ मिलकर इन बच्चों को न सिर्फ पढ़ाने का बल्कि उनके लिए स्कूल ड्रेस सहित बाकी कपड़ों का इंतजाम भी किया। वर्ष 2008 में दिल्ली के आदिलाबाद किले से हुई यह शुरुआत तुगलकाबाद, कुतुब मीनार, पुराना किला, लाल किला और फिर सफदरजंग के मकबरे तक फैल गयी। जहां स्मारकों के संरक्षण में लगे मजदूरों के एक हजार से अधिक बच्चों को अब तक हिन्दी, अंग्रेजी और गणित विषय के आधारभूत ज्ञान की शिक्षा दी जा चुकी है। इस मुहिम में करीब तीन सौ मजदूर भी अक्षर ज्ञान हासिल कर चुके हैं।
ऐतिहासिक धरोहरों की खोज और उनके जीर्णोद्धार में लगे पुरातत्वविदों द्वारा देश के भावी भविष्य के संरक्षण की इस मुहिम को वर्ष 2011 में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और उनकी पत्नी मिशेल ओबामा ने भी काफी सराहा। भारत आये ओबामा को जब इस मुहिम की खबर लगी तो वह अपने प्रोटोकॉल को तोड़ कर इन बच्चों से मिलने पहुंच गये और भाव-विभोर होकर टूटी-फूटी हिन्दी में बस इतना ही बोल सके “ ऐसे ही पढ़ते रहो और आगे बढ़ते रहो।”
बजट खत्म होने के कारण स्मारकों के जीर्णोद्धार का काम अगले वित्त वर्ष तक फिलहाल रोक दिया गया है। कोमल भी अपने गांव वापस लौट रही है लेकिन अब उसके हाथ में मिट्टी का घरोंदा नहीं बल्कि एक किताब है।
अनूठा रेप्लिका म्यूजियम

सीरी फोर्ट स्टेडियम के पास चिल्ड्रन म्यूजियम के एक हिस्से में पुरातत्व विभाग ने एक अनूठा रेप्लिका (प्राचीन दुर्लभ मूर्तियों की हू-ब-हू नकल) म्यूजियम बनाया है। । यदि कुषाण काल (लगभग तीसरी शताब्दी) में बनी तपस्यारत भगवान बुद्ध की एक मात्र मूर्ति देखनी हो तो पर्यटकों को पाकिस्तान के लाहौर जाना पड़ता लेकिन अब वह दिल्ली में ही देखी जा सकती है। लगभग छठी शताब्दी के कलचुरी काल में निर्मित विभिन्न पशुओं की विशिष्टता का प्रदर्शन करती भगवान शिव की अदभुत मूर्ति की प्रतिकृति छत्तीसगढ़ के बिलासपुर से ली गयी है। दूसरी शताब्दी की कृष्णकालीन गंधार कला का प्रतिनिधित्व करती मदोन्मत(नशे में डूबी) स्त्री जिसे उसका पति सहारा देकर उठाता नजर आ रहा है, मथुरा के मोहाली गांव से मिली मूल प्रतिमा की प्रतिकृति है।

रेप्लिका म्यूजियम के योजनाकार अधीक्षण पुरातत्वविद मोहम्मद केके बताते हैं कि यहां प्रदर्शित सभी कलाकृतियां अपनी मूल कलाकृतियों के आकार-प्रकार ही नहीं बनावट में भी समान हैं। जिन्हें देखकर असली और नकली का अंदाजा लगाना असम्भव है। इस म्यूजियम में दुर्लभ 150 कलाकृतियां की रेप्लिका लगाने की योजना है। पटना और बनारस कलाविद्यालय के दर्जनों छात्रों ने कई महीनों की महनत के बाद इन मूर्तियों में जान फूंकी है। अभी 25 कलाकृतियां तैयार की हैं, जिन्हें यहां प्रदर्शित किया गया है।
पुनर्निमाण एवं जीर्णोद्धार
भारतीय पुरात्तव सर्वेक्षण विभाग की पहचान यूं तो ऐतिहासिक धरोहरों की खोज करने और प्राचीन इमारतों का संरक्षण करने वाले सरकारी महकमे के तौर पर होती है लेकिन अब यह महकमा बिखरे अवशेषों को इकट्ठा कर उनको पुराने स्वरूप में वापस लौटाने के काम को भी अंजाम दे रहा है।
दो दशक पहले इस काम की शुरुआत आगरा में मुगल सम्राट अकबर की इबादतगाह (जहां उसने दीन-ए-इलाही धर्म की शुरुआत की थी) को खोजने और बीच बाजार में स्थित इस ऐतिहासिक स्थल को अवैध कब्जे से मुक्त कराने के साथ हुई। मोहम्मद केके की यह योजना भारत सरकार को बेहद पसंद आयी और इसे पूरे देश में जोर-शोर से शुरू किया गया। अयोध्या में विवादित स्थल पर हुए उत्तखनन में पुरातत्व विभाग की टीम में अकेले मुस्लिम सदस्य मोहम्मद केके ही थे। वह बताते हैं कि उनके लिए सबसे मुश्किल काम चंबल के बीहड़ों में गुर्जर-प्रतिहार वंश कालीन बटेसर मंदिर श्रंखला के लाखों अवशेषों को पुनः स्थापित करना रहा। दस्यू प्रभावित क्षेत्र होने के कारण सबसे पहले निर्भर गुर्जर जैसे दुर्दांत डांकुओं को मनाने में खासी मसक्कत करनी पड़ी, फिर शिवराज सिंह की भगवा सरकार में ऊंची पहुंच रखने वाले खनन माफियाओं ने इन अवशेषों की तस्करी करना शुरू कर दिया। प्रदेश सरकार के असहयोग से नाराज हो उन्होंने सीधे संघ प्रमुख सुदर्शन को चिट्ठी लिख सवाल कर डाला कि अयोध्या में एक मंदिर बनाने की बात करने वाली भाजपा मध्य प्रदेश की सत्ता में रहते हुए दो सौ मंदिरों की पुनः स्थापना में रोड़े क्यों अटका रही है, संघ के दखल के बाद कहीं जाकर शिवराज सरकार ने खनन माफियाओं पर अंकुश लगा और काम आगे बढ़ा। 200 मंदिरों की इस श्रंखला में से 70 मंदिरों को फिर से स्थापित करने के साथ ही उसे हैरिटेज साइट का भी दर्जा दे दिया गया है।

मोहम्मद कहते हैं कि ऐतिहासिक इमारतें ही भारत की प्राचीन संस्कृति और इतिहास से रूबरू कराती हैं इसलिए देश की इन धरोहरों का संरक्षण किसी एक सरकार, विभाग या नागरिक की जिम्मेदारी नहीं बल्कि पूरे देश की जिम्मेदारी है और वह अपने हिस्से की जिम्मेदारी का निर्वाह करने का प्रयास कर रहे हैं।
उन्हें “धरोहरों के संरक्षण” में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए राजीव गांधी ग्लोबल एक्सीलेंसी एवार्ड और सार्क कंट्री एवार्ड जैसे दर्जन भर राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है।
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