• देश उबल रहा है...



    हे चाणक्य! तुम कहां हो... हे राष्ट्र शिक्षक! तुम क्यों मौन हो... क्यों तुम्हारी जिव्हा पथरा गयी है... देखो! धनानंद फिर अट्टाहस कर रहा है... तुम्हारी सुहासिनी को महा अमात्य  राक्षस नौंच-खसोट रहा है... देखो! तुम्हारे शिष्य राजपथ पर उग्र हुए जा रहे हैं... ना कहीं चणक हैं इन्हें राह दिखाने के लिए और ना तुम हो...
      
    होना भी नहीं चाहिए... हर बार राष्ट्र द्रोही का अंत करने की रणनीति तुम्ही क्यों बनाओ... तुम्हीं तो कहते थे कि कर्ज आखिरी पण तक चुकाओ और शत्रु का नाश आखिरी निशान तक... लेकिन, दुर्भाग्य! हे महाशिक्षक तुम्हारी थाथी इस युग के शिक्षक संभाल न सके... वो तो राज प्रसादों से मिलने वाले मोटे वेतन के तले दबे हैं... और, उनकी जिव्हा अलंकारों के तमाचों से खामोश हैं... लेकिन, चिंतित मत होना, यह राष्ट्र तुम्हारा है और इस राष्ट्र का प्रत्येक युवक सत्ताधारी, भोग-विलासी, अहंकारी और ध्रूत धनानंद के दरबार और उसके कमिश्नर रूपी सेनापति राक्षस का मुकाबला करने को उठ खड़ा हुआ है....


    हे राष्ट्र शिक्षक!.... मानता हूं कि महा अमात्य शट्टार की भांति बाबा रामदेव सेनापति राक्षस का मुकाबला न कर सके... रणछोड़ तो कान्हा भी हुए लेकिन यह बात अलग है कि उन्होंने बाबा की तरह बहिन का छद्म रूप नहीं धरा था...
    राष्ट्र को झंकझोर देने वाले चणक पुत्र चांणक्य... मैं ये भी मानता हूं कि तुम्हारे महान पिता की भांति अन्ना ने राजपथ पर खुली बगावत की थी... लेकिन, वो अपने ही सत्तालोभी सारथियों द्वारा क्रांति रथ से उतार फेंके गये... लेकिन मां भारती के सच्चे सपूत.... देखना अब आपको भी मानना होगा कि आपकी संततियां... बिना नेतृत्व के.... बिना पथ प्रदर्शक के और किसी लाभ-हानि की परवाह किये बिना धनानंद और उसके दरबार को आखिरी निशान तक मिटाकर रख देंगे.... तुम्हारी युवा संतति की मुश्तें खिंच रही हैं... भृकुटियां तन रही हैं... और देश उबल रहा है...
     जरूर वक्त लगेगा, चंद्रगुप्त को तलाशने और तराशने में... किन्तु स्वराज आयेगा और जरूर आयेगा... लहुलुहान राजपथ को देखकर तो यही जान पड़ता है...ब्रितानियां हुकूमत को मार भगाने के बाद... पहली बार दिखी है ऐसी स्वस्फूर्ति... कब तक चुप रहेगा तुम्हारा लहू...

     हे! चाणक्य मुस्कुराओ.... युवाओं के हौंसले देखकर... जो तुम्हारे मार्ग पर चलने को आतुर दिख रहे हैं... लेकिन, हे चणक पुत्र! थोड़ा डराओ.... उन शिक्षकों को जो राजप्रसाद की अनुकम्पा के लालच में तक्षशिला को मधुशाला समझ मदहोश पड़े हैं.... अपने बिस्तरों में..
    एक नहीं लाखों चंद्रगुप्त इंतजार में हैं... जगाओ इन सुप्त आत्माओं को ... क्योंकि, देश उबल रहा है... राजपथ उबल रहा है.... हे! चणक पुत्र, आव्हान करो हे धनानंद! तैयार हो जाओ... अपने निशान तक समाप्त होने को... क्योंकि युवा तक्षशिला से निकल चुका है... राजपथ पर....फिर लहू बिखर चला है....देश उबल रहा है।

  • 5 टिप्‍पणियां:

    1. Vinay Pathak:- vineet ji main kya kahna chah raha hoon....shabd nahi mil rahe hai,,bas pad kar rogate khade ho gaye.......punah ek shashakt lekh.........badhai

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    2. Manoj Dixit:- Sab kuch vote bank ki raajniti main gum ho gaya hy

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    3. Vali Mohd:- Mai bus yahi kahunga sir shabd ek talwar ke trah hote hai jo lekh ka rup lete hai or aap ke shabd talwar nhi talwar-e-shamshiri hai... To lekh ke bare me kya kahna

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    4. Pranava Priyadarshee:- very nice vineet, carry on.

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    5. Padampati Sharma:- Behtareen.... God Bless

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