• जिद करके तो देखो.....




     शीतल पेय माउन्टेन ड्यू की पंच लाइन है.... डर के आगे जीत है.... कहने भर के लिए तो यह सिर्फ पंच लाइन हैं... लेकिन साल के आखिरी महीने दिसम्बर में, भारतीय राजनीति के तीन दिग्गजों के फैसले इस पंच लाइन के इर्द-गिर्द घूमते नजर आये.... जो मारे सो मीर की तरह दो ने सत्ता का वरण किया और एक ने डर को ऐसा ओढ़ा कि उनका दशकों पुराना रानीतिक खिताब दरकता दिखा.... हम बात कर रहे हैं राजनीति के हालिया हीरो नरेन्द्र मोदी, वीर भद्र सिंह के साथ सीबीआई के आगे घुटने टेक चुके समाजवादी पहलवान मुलायम सिंह यादव की.... 


    namaskar dilli....
    गुजरात जैसे राज्य में लगातार पांचवीं बार भगवा ध्वज लहराने का श्रेय सिर्फ और सिर्फ नरेन्द्र भाई मोदी को ही जाता है.... निश्चित ही इस लिहाज से वह साल के सबसे बड़े हीरो माने जा रहे हैं.... नरेन्द्र दामोदरदास मोदी... मेहसाणा जिले के चंडनगर कस्बे में चाय की दुकान से अपना करियर शुरू करने वाले मोदी.... विश्वव्यापी विरोध के बावजूद तीसरी मर्तबा गुजरात के सिंहासन का निर्विघ्न वरण करने जा रहे हैं... हर ओर उनकी तारीफ के कसीदे पढ़े जा रहे हैं... लेकिन कितने लोग हैं जो मोदी के व्यक्तित्व से कुछ सीख लेंगे... कहना मुश्किल है... चाय की दुकान के बाद... भगवा राजनीति की नर्सरी संघ में कदमताल करते हुए... मोदी ने पहला पाठ पढ़ा अनुशासन... जी, यही अनुशासन उनके व्यक्तित्व की सबसे बड़ी पूंजी है...अनुशासन में रहते हुए उन्हें कभी दिशा भ्रम नहीं हुआ... संघ में शुरुआत से ही वह समर्पण से ओत-प्रोत दिखे... मातृ संगठन का निर्देश हुआ तो राजनीतिक संगठन भाजपा के लिए गांव-गांव घूम कर कार्यकर्ताओं की फौज जुटाना शुरू किया.... अनुशासन में आप तभी रह सकते हैं जब आप ईमानदार हों... नरेन्द्र ने पूरी ईमानदारी के साथ संगठन खड़ा करने का काम किया और इस ईमानदारी का फल उन्हें मिलना निश्चित था... जो पहले प्रदेश संगठन और फिर राष्ट्रीय संगठन तक ले गया... राष्ट्रीय संगठन में नरेन्द्र को कोई याद रखे न रखे... लेकिन उन्हें गुजरात ने याद रखा... जहां लहलहाती पार्टी की जड़ों में खाद-पानी उन्होंने ही दिया था... विनाशकारी भूकम्प और उसके बाद उपचुनावों में मिली करारी हार के बाद गुजरात को और पार्टी को असल माली की फिर याद आयी... और, अक्टूबर 7, 2001 को नरेन्द्र पहली बार सत्तासीन हुए... वह भी अपने राजनैतिक गुरु के स्थान पर... बड़ी चुनौतियां थी... लम्बा सफर था... उससे कहीं ज्यादा राह में बिछे वो कांटे थे जिन्हें निकालने के चक्कर में क्या घर और क्या बाहर... सबसे बड़ा खलनायक बनने वाले थे... साल 2002, गोधरा में कई हिन्दू यात्रियों का आखिरी सफर साबित हुई वो रेलगाड़ी... लपटों में घिरी उस बोगी की आग अभी शांत भी नहीं हुई थी कि... प्रतिक्रिया स्वरूप मोदी की मौन स्वीकृति या कहें सक्रिय मार्ग दर्शन में... गुजरात के अधिकांश मुस्लिम बाहुल्य मोहल्लों के हालात उस बोगी से भी भयावह दिखने लगे... क्या देश और क्या दुनिंया... सारी सरहदें खत्म होती नजर आयीं उस वक्त... मानो दुनियां तीन सिर्फ तीन धुरियों में बंट गयी हो... हिन्दूवादी... मुस्लिम समर्थक और सेक्यूलर... हिन्दूवादी मोदी के समर्थन में खड़े थे... उनकी नजर में यह क्रिया की प्रतिक्रिया थी... मुस्लिम समर्थक जो अल्पसंख्यकों के कत्लेआम का खुला विरोध कर रहे थे...  और तीसरे सेक्यूलर जो मानवाधिकार हनन हुआ उसे तरजीह दे रहे थे.... जिनमें से कुछ विदेशी इमदाद से करोड़पति या करोड़पत्नी भी बन गये... लेकिन मोदी डटे रहे... क्योंकि उन्हें पता था कि डर के आगे जीत है.... जीत मिली भी पहले 2007 और फिर 2012 के चुनावों में.... इतना ही नहीं गुजरात में फिर कभी दंगा नहीं भड़का... शायद मोदी और दंगाईयों को कुछ सबक मिल गया हो... उन इलाकों में भी कभी फिर कोई चीख नहीं सुनाई दी जिनमें आजादी के बाद अक्सर जरा-जरा सी बात पर महीनों कर्फ्यू लगाना पड़ता था... अमेरिका तक ने उन पर पाबंदी लगा दी... लेकिन मोदी भी जिद्दी थे... उन्होंने भी उस गली को ओर कभी रुख नहीं किया जिसकी मंजिल अमेरिका हो... उन्होंने रुख किया नंदीग्राम की तरफ जहां से नैनो चुरा लाये... उन्होंने रुख किया उन औद्योगिक घरानों की ओर जहां से वह कुल राष्ट्रीय औद्योगिक विकास के 31 फीसदी से अकेले गुजरात से 41 फीसदी हिस्सा दे आये... इतना ही नहीं उन्होंने रुख किया जनता की ओर, और तीसरी बार गुरू के विरोध के साथ-साथ मुखबिर बने पुलिसवाले की मुखर घरवाली को आसान मात दे गुजरात के मुखिया की कुर्सी जीत लाये.... माइक्रो ब्लागिंग साइट्स के आंकड़ों को देखें तो विरोधियों और समर्थकों के लिए साल की सबसे बड़ी हार-जीत थी।

    the tiger
    अब बात दूसरे लड़ाके की...  वीर भद्र सिंह... यही नाम है हिमाचल की हसीन वादियों में कांग्रेस का... जहां पार्टी का मतलब वीर भद्र सिंह और पार्टी के मुखिया का मतलब भी वीर भद्र सिंह ही है.... रामपुर बुशहर राजघराने का यह लगभग 90 साला शेर भले ही बूढ़ा हो गया हो... लेकिन इसके पंजों की मजबूत पकड़ कांग्रेस पर कभी ढ़ीली नहीं हुई... पचास साल पहले वर्ष 1962 में कांग्रेस के झंडे तले पहला लोकसभा चुनाव जीता था.. वीर भद्र ने... अप्रैल 1983 तक आते-आते पूरे हिमाचल पर ही कब्जा जमा लिया.... वीर भद्र के पंजे से हिमाचल और कांग्रेस को छुड़ाने की पहली कोशिश वर्ष 1993 में प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने की थी... लेकिन उन्हें मुंह की खानी पड़ी... वीर भद्र सत्ता छोड़ना तो दूर की बात हिमाचल छोड़ने तक को राजी नहीं हुए... हार कर राव ने सुखराम को हिमाचल भेजा मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने... लेकिन इस बूढ़े शेर ने खुली बगावत कर दी और सुखराम को बैरंग लौटा मुखमंत्री पद कब्जा लिया... न सुखराम कुछ कर सके और ना ही नरसिम्हा राव.... दूसरी बार ऐसी ही हिमाकत सोनियां गांधी  ने भी कर दी... साल 2003 में हॉकी की मशहूर खिलाड़ी विद्या स्टोक्स ने सोनिया की लाठी पकड़ हिमाचल की राजनीति में शानदार स्ट्रोक लगाना चाहा... लेकिन दूसरी तरफ था जिद्दी गोल कीपर... उसने न सिर्फ विद्या के गोल को नाकाम किया बल्कि ऐसी बॉल उछाली कि कोई उसेके आड़े आता इससे पहले ही वह गोल पोस्ट में दाखिल हो चुकी थी... पार्टी तोड़ अकेले दम पर सीएम बनने का ऐलान करते ही सोनिया ने विद्या स्टोक्स से  ही वीर भद्र का नाम मुख्यमंत्री पद के प्रस्तावित करा दिया.... दूसरी मर्तबा उन्होंने साबित कर दिखाया कि डर के आगे ही जीत है... हालिया चुनाव में भी वीर भद्र की हनक साफ दिखाई देती है.... भ्रष्टाचार के चलते वीर भद्र से केन्द्र सरकार में दी गयी लाल बत्ती सोनिया ने छीन ली... लेकिन वीर भद्र नहीं हारे ... उन्होंने अपने ऊपर लगे आरोपों का डटकर सामना किया और अकेले किया... चुनाव सिर पर आते देख हाईकमान ने वादियों में लौट जाने को कहा तो सिरे से मना कर दिया.... जवाब था ... आरोप सही साबित हुए तो दिल्ली से ही सन्यास लूंगा और गलत तो फिर से लाल बत्ती.... हाईकमान की बत्ती गुल हो गयी.... आखिरकार हिमाचल के विपक्षी दल के मुखिया का पूरा का पूरा पॉवर हाउस देकर उन्हें सोनिया ने विदा किया.... वीर भद्र ने अपनी मर्जी से टिकट बांटे... बिसात बिछाई और एलआईसी एजेंट से मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे धूमल की सत्ता पॉलिसी लैप्स करा दी.... वकील धूमल अब अपने बचाव में टिकटों के गलत बंटवारे का आरोप लगा अपनी हार का सेहरा यूपी के धुरंधर कलराज मिश्रा के सिर बांधना चाहते हैं....

    time is over
    और आखिर में बात एक ऐसे योद्धा की जो हमेशा मांटी से लथपथ रहना चाहता हो... और अपने मुकाबिल कई गुना भारी-भरकम, ताकतवर दुश्मन को अपने एक धोबी पाट में चित्त कर देता हो.... साल का आखिरी महीना जहां मोदी और वीर भद्र डर के आगे बढ़ कर जीत का वरण कर रहे थे वहीं ... यह पहलवान डर के आगे ऐसा चित्त हुआ कि... बात उसके खिताब को बचाये रखने पर आ गयी.... धरती पुत्र.... किसानों का मसीहा... जैसे खिताबों से नवाजे जाने वाले मुलायम सिंह यादव.... सीबीआई से डर गये.... अपने धोबी पाट से बड़ी से बड़ी सत्ता तक को धूल चटाने वाले मुसिया... हथियार डालने को मजबूर हो गये वह भी दो महिलाओं के आगे... उन दो महिलाओं के जिन्होंने उन्हें दोनों ओर से घेर रखा था... पहली हैं सोनिया गांधी... सीबीआई की धोंस दिखाकर उनका प्रगतिशील मोर्चा दिनों-दिन प्रगति कर रहा है... और दूसरी हैं बहन मायावती जो सोनिया का डर दिखाकर मुसिया से कुछ भी करवा डालती हैं... किसानों का मुद्दा हो या फिर देश के जवानों का मुलायम सिंह दोनों में खासी लोकप्रिय रहे हैं.... जेपी और लोहिया के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आपातकाल का मुकाबला करने की बात हो या फिर किसानों की फसलों का सही दाम दिलाने के लिए लखनऊ से लेकर दिल्ली के राजपथ तक किया गया प्रदर्शन... हर बार मुलायम मजबूत होकर उभरे... लेकिन जब देश के किसान ने खुदरा में विदेशी निवेश पर उनके तीखे विरोध का भाषण सुनने के बाद उसे मंजूर दिलाने के लिए मैदान खुल्ला छोड़ देने की घोषणा सुनी तो... भौंचक्क रह गया... समझ नहीं आया उसे कि यदि एफडीआई उसके हित में नहीं तो मुसिया उसका खुला विरोध क्यों नहीं करते.... क्यों जेपी और लोहिया को याद कर उनकी आत्मा को कष्ट पहुंचा रहे हैं.... वो होते तो शायद एफडीआई कभी नहीं आता.... लेकिन मुसिया आप भी होते तो भी एफडीआई किसी कीमत पर नहीं आता... लेकिन एक पहलवान को रणछोड़ते देखना कई सवाल खड़े कर गया... जवाब लोग समझ रहे थे लेकिन राजनीतिक अखाड़े के रणछोड़ ने इसका जवाब खुद ही दे दिया... सीबीआई... जी हां सीबीआई का डर दिखाया गया था उन्हें.... लेकिन पहलवान साहब डरे क्यों... क्योंकि जिन किसानों के, जवानों के वो मसीहा थे... उन्ही के बूते अकूत दौलत जमा की थी उन्होंने...  और उसी के हिसाब-किताब ने उलझाकर रख दिया था उन्हे... डर गया सो मर गया मुसिया जी... सारे किये धरे पर पानी फेर लिया... ऐसा पानी कि बहन मायावती जी की तो छोड़ो, आपकी हमदर्द सोनिया जी ने भी उसी सदन में आपको ठैंगा दिखाते हुए... आपकी मर्जी को चौखट के बाहर धकेलते हुए... पदोन्नति में आरक्षण देने में वैसी हिचक नहीं दिखाई जैसी आपके चलते महिलाओं को आरक्षण देने में दिखाई पड़ी थी... खैर गुजरा वक्त और छोड़ा गया तीर कभी वापस नहीं लौटते... धरती पुत्र का इटली पुत्री से डरावना दुलार.... उन्हें साल का सबसे बड़ा खलनायक बना गया...
                                                            मोरल ऑफ द स्टोरीः डर के आगे जीत है.... 

  • 4 टिप्‍पणियां:

    1. Manoj Dixit:- modi ki jeet par likhny ky baad ek lakh b j p par bhi likhiy

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    2. Vineet Kumar Singh(BHU):-- Jabardast hai sir...lajawaab...

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    3. Vinay Pathak डर के आगे जीत है.... bahut badiya samiksha ki hai vineet ji.itana nirbhik aur buland lekh bahut dino ke baad mila ..badhai.

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    4. Pramod Kumar Shantoo Gupta:- डर के आगे घुटने टेक चुके समाजवादी पहलवान ने डर को ऐसा ओढ़ा कि उनका दशकों पुराना रानीतिक खिताब दरकता दिखा.... BILKUL SAHI AAKLAN LAGTA HAI

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