जिन्ना के दादा प्रेमजीभाई “मेघजी” ठक्कर और उनके पिता पूंजाभाई “मेघजी” ठक्कर सोमनाथ के निकट वेरावल के लोहाणा व्यवसायी थे। हालांकि मछलियों के मुनाफा देने वाले स्थानीय कारोबार से उनका जुड़ना उनके शाकाहारी समुदाय को मंजूर नहीं था। पर मेघजी के वंशजों ने धर्म पर व्यापार को तरजीह दी और उन्होंने धर्म-परिवर्तन कर लिया। उस समय किसी को इस बात का इलहाम भी नहीं रहा होगा कि एक परिवार द्वारा उठाया गया यह कदम एक दिन भारतीय उप-महाद्वीप की भू-राजनीति की हिंसक तरीके से कायापलट कर देगा।
यहां तक कि आज भी मेमन, खोजा, वोरा आदि बन जाने वाले गुजराती लोहाणा व्यापारियों का कराची के बाजारों पर दबदबा है और ये संभवतः पाकिस्तान के सर्वाधिक समृद्ध व्यापारी तबकों में शुमार हैं। उनका गुजराती सहोदर, एक दूसरा लोहाना अब रायसीना हिल के दफतर में जा रहा है।प्रधानमंत्री मोदी की सरकार के प्रचार प्रसार के ‘व्यवसाय’ का जिम्मा अब उन्हीं के जिम्मे है।
हो सकता है कि 70 वर्ष से अधिक उम्र के ठक्कर एक ऐसे प्रधानमंत्री के लिए जन संपर्क अधिकारी के रूप में सही व्यक्ति के रूप में न नजर आते हों, जो कि “युवा और नये” भारत की बढ़ी हुई आकांक्षाओं को स्वयं संबोधित करना चाह रहे हों। गांधीनगर के गलियारों में जगदीशभाई के रूप में जाने जाने वाले ठक्कर नई दिल्ली के लिए बाहरी व्यक्ति हैं। उनका सारा जीवन गुजरात में कामकाज करते हुए बीता है। इसके अलावा वे मीडिया में चर्चित कोई प्रभावशाली व्यक्ति भी नहीं हैं। लेकिन उन्हें दिल्ली लाने वाले प्रधानमंत्री मोदी के लिए खामियों के रूप में नजर आती इन बातों को कोई मोल नहीं है। इसके उलट ये उनके लिए खूबियां प्रतीत होती हैं। मोदी ने स्वयं को नई दिल्ली के सत्ता के गलियारों के लिए काफी पहले ही बाहरी व्यक्ति बताया था और उसके ढांचे में आमूल परिवर्तन की बात कही थी। मोदी केंद्र सरकार के कामकाज के तरीकों को नये सिरे से परिभाषित कर रहे हैं। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनका पीआरओ नई दिल्ली के तौर-तरीकों का अभ्यस्त है कि नहीं।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “अब यह काम नई दिल्ली का है कि वह मोदी और उनकी शैली को समझे, वे उसके अनुकूल चलने वाले नहीं। यह व्यक्ति पारंपरिक ढर्रे पर चलने वाला नहीं, वह अपना रास्ता खुद बनाएगा। यह दायित्व दूसरे लोगों पर आ गया है कि वे उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चलें।”
ठक्कर को इसी काम को अंजाम देने के लिए लाया गया है। वे दिल्ली के प्रभावशाली लोगों से संबंध बनाने के लिए तत्पर नहीं होंगे। इसके उलट उन्हें ही ठक्कर तक पहुंचने के लिए जतन करनी होगी। उन्होंने पीआरओ के रूप में तीन दशक तक अपनी सेवाएं दी हैं और उनके कार्यकाल में गुजरात में दस मुख्यमंत्री आये और गये। वे एक भी ऐसा वाक्य नहीं बोलने के लिए प्रसिद्ध हैं जो कि विवादास्पद रहा हो। यही संभवतः वह एकमात्र कारण रहा है कि परस्पर-विरोधी मुख्यमंत्रियों यानि अमरसिंह चौधरी और माधव सिंह सोलंकी (कांग्रेस), चिमनभाई पटेल और छबीलदास मेहता (जनता-कांग्रेस), शंकर सिंह वघेला, केशुभाई पटेल और नरेंद्र मोदी (भाजपा) ने उन्हें बनाये रखा।
मोदी जब 2002 में गुजरात के मुख्यमंत्री बने तो सेवानिवृत्ति की दहलीज पर पहुंचे सूचना सेवा के अधिकारी ठक्कर उन बहुत थोड़े से अधिकारियों में से थे जिन्हें उन्होंने बनाये रखा। सूचना सेवा के अधिकारी के रूप में ठक्कर के कार्यकाल से परिचित अहमदाबाद स्थित एक वरिष्ठ पत्रकार ने बताया, “वे वहां पर अपने बॉस की सेवा करने के लिए थे, फिर वह चाहे जो भी हो। वे वहां पर मीडिया की सेवा करने के लिए नहीं हैं। वे खीझ पैदा करने की हद तक विनम्र और आवभगत करने वाले हो सकते हैं, लेकिन चाय और बिस्कुट को छोड़कर उनसे और कुछ नहीं मिल सकता। जब उनके पास देने के लिए जानकारी होती है तो भी वे बस उतना ही बताएंगे जितना कि वे या उनका बॉस बताना चाहता है, उससे एक भी शब्द अधिक नहीं। आपको उनसे बात करके घिसे-पिटे प्रेस बयान जितनी ही जानकारी प्राप्त होती है। वे अपने बॉस के लिए शानदार खबर हैं लेकिन मीडिया के लिए बुरा समाचार। यह संभवतः उस मनोभाव का पैमाना है, जिसे कि इस शख्स ने नयी व्यवस्था के इर्दगिर्द पहले ही पैदा कर दिया है। उन्हें जानने वाला कोई भी व्यक्ति सामने से कुछ कहने को तैयार नहीं है। पीएमओ में कार्यरत पदाधिकारियों समेत अनेक लोगों ने टिप्पणियां करने से साफ मना कर दिया या खुद को अनुपलब्ध बना लिया।
दरअसल, जगदीशभाई द्वारा अपनाई जाने वाली शैली जाने-पहचाने पीआरओ को विस्तार देने का एक ढंग है। वे जन संपर्क अधिकारी के मुकाबले प्रेस बयान अधिकारी अधिक हैं। संक्षिप्तता की जरूरत और उसकी उपादेयता को जानने में उन्हें महारत हासिल है। गुजराती उनकी मातृभाषा है पर अंग्रेजी का भी उन्हें कामकाजी ज्ञान है। अनुवाद के अधिकतर कामों के लिए प्रधानमंत्री उन पर भरोसा करते हैं। इस काम को चुनाव अभियान के दौरान उन्होंने अनवरत अंजाम दिया।
उनके प्रेस नोट अक्सर बहुत ही संक्षिप्त हो सकते हैं। अगर आपको पृष्ठभूमि के बारे में और अधिक जानकारी चाहिए तो ठक्कर को फोन करना या उनसे मिलने जाना समय की बर्बादी के सिवा और कुछ नहीं। गुजरात भाजपा के प्रवक्ता रह चुके एक नेता ने बताया, “वे अपने प्रेस बयान से ज्यादा कुछ नहीं बताते। दरअसल, वे आपसे उससे ज्यादा जानकारी हासिल कर लेंगे जितना कि वे आपको देते हैं। अक्सर नरेंद्रभाई उनसे पूछते हैं कि मीडिया का मिजाज कैसा है? और वे जगदीशभाई की राय और जानकारी पर भरोसा करते हैं। उनकी समझ एकदम साफ होती है और वे नरेंद्रभाई से दो-टूक लहजे में बात कर सकते हैं। वे उस चमचे की तरह से नहीं हैं जो कि वही बोलता है जो कि उसका बॉस सुनना चाहता है। दूसरी तरफ, वे लोगों को नपे-तुले शब्दों में जानकारी देंगे और केवल वही बताएंगे जिसे कि उनका बॉस बताना चाहता है। वे संभवतः नरेंद्रभाई को किसी भी दूसरे व्यक्ति के मुकाबले ज्यादा अच्छी तरह से जानते हैं लेकिन वे इसका आभास नहीं होने देना चाहते।”
उन्हें एक अर्से से जानने वाले एक नौकरशाह ने बताया कि प्रधानमंत्री क्यों ठक्कर पर इतना अधिक भरोसा क्यों करते हैः “उनकी एक मात्र महत्वाकांक्षा अपने बॉस की वफादारी और पूरे मन से सेवा करने की है। ठक्कर ईमानदार, अनथक और स्पष्टवादी हैं। वे दिए गये हर काम को बिना ना-नुकुर किये करेंगे। इसके अलावा वे मौनी बाबा तो हैं ही। पीएमओ से किसी धमाकेदार खबर मिलने की आशा न करें, उससे अधिक एक शब्द की भी आशा न करें, जो कि ठक्कर बताना चाहते हैं।”
क्या उनके आने का मतलब पीएमओ में प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार के जी-ललचाऊ पद का प्रभावहीन हो जाना है? गुजरात में ठक्कर का कामकाज अगर कोई पैमाना है तो बहुत संभव है कि उनका ऑफिस सूचना का केंद्रीयकृत स्रोत हो और वहीं से एक साथ सरकारी और राजनीतिक जानकारियां मिलें। पारदर्शी व्यवस्था के मोदी के दावे का सच यह है कि उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति को प्रभारी बनाया है, जिसकी अल्पभाषिता और मौन गुजरात में चर्चित रहा है। पीएमओ की वेबसाइट और सोशल मीडिया के मंचों पर दी गयी जानकारी पहले ही इसका संकेत दे रही है, जहां पर आयोजनों और कार्यक्रमों से जुड़ी जानकारियों की तो भरमार है लेकिन बुनियादी बातों की जानकारी का घोर अभाव है।
जगदीश भाई की अममियत इस उदाहरण से और स्पष्ट हो जाएगी। सोहराबुद्दीन की हत्या में अपनी कथित
भूमिका के लिए जुलाई 2010 में अमित शाह के गिरफ्तार होने के शीघ्र बाद हरेन पंड्या की विधवा जागृति पंड्या ने मोदी को पत्र लिखकर उनसे अपने पति की हत्या की नये सिरे जांच कराने की मांग की। उन्होंने उस पत्र को उसी समय मीडिया को भी जारी कर दिया। उस दिन शाम को अहमदाबाद के बहुत से पत्रकारों को गुजरात सरकार के तत्कालीन प्रवक्ता जय नारायण व्यास के पास से इस मामले पर आने वाले बयान की प्रतीक्षा करने के लिए कहा गया। जब बहुत देर हो गई तो कुछ पत्रकारों ने व्यास को यह पूछने के लिए फोन किया कि क्या हुआ, बयान अभी तक आया क्यों नहीं। व्यास ने कहा कि उन्हें तो पता ही नहीं कि कोई बयान तैयार किया जा रहा है। दरसल बयान तो जगदीशभाई ठक्कर तैयार कर रहे थे। व्यास को तो बस हस्ताक्षर करने थे।
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गुजरात
के लोहाणाओं ने इतनी बुलंदियां यों ही नहीं हासिल की हैं। इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि
जिन्ना ने पाकिस्तान बनाया और खुद वहां चले गए, लेकिन अपनी औलाद भारत में ही छोड़ गए। उनकी बेटी दीना वाडिया मुम्बई में ही रही और अच्छा खासा (दस हजार करोड़ से ज्यादा ) औद्योगिक साम्राज्य खड़ा किया। ब्रिटानिया और बॉम्बे डाइंग उन्ही मे से एक हैं। दीना के बेटे नुश्ली वाड़िया और नुश्ली के नेस वाडिया प्रीति जिंटा से छेड़छाड़ मामले में आजकल खासी सुर्खियां बटोर रहे हैं।
आम जनता अब पाकिस्तान को किस मुंह से गाली देगी। जब उसके बनाने वाले यहीं बसे हुए हैं और राज कर रहे हैं।
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