हाल ही में एक हजार रुपए की रिश्वत लेने के मामले में एक पटवारी को चार साल की सजा सुनाकर कोटा के भ्रष्टाचार निवारण न्यायालय ने नजीर पेश की कि रिश्वत में ली गई रकम भले ही मामूली हो, लेकिन आम नागरिक का शोषण करना गंभीर अपराध है। ऐसे में विश्वविद्यालय तो शिक्षा का वह मंदिर है जहां देश के भावी भविष्य को हकूक के लिए लडऩा सिखाया जाता है। संस्कारों की सीख देने के बजाय जब आम आदमी के हक को छीनने का कृत्य किया जाएगा तो यहां पढऩे वाली युवा पीढ़ी और देश का भविष्य क्या होगा यह आसानी से समझा जा सकता है।
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कोटा विश्वविद्यालय का जन्म हुए डेढ़ दशक भी नहीं हुआ, लेकिन भ्रष्टाचार और अराजकता की दीमक इसे अभी से चाटने लगी है। वर्ष 2012 से 2014 के बीच हुई नियुक्तियों में नियम कायदों को ताक पर रखकर तत्कालीन कुलपति और बोम सदस्य के बेटे-बहू के साथ-साथ राजनेताओं के करीबीयों को नौकरियां बांटकर जिस तरह आम नागरिक का हक छीनने का अपराध किया गया है, वह एक हजार रुपए की रिश्वत लेने के मामले से भी बड़ा और गंभीर है।
जोधपुर के जयनारायण व्यास विवि में भी इसी कालक्रम में रसूखदारों के रिश्तेदारों को नौकरियां बांटने का अपराध किया गया था। वहां हुए फर्जीवाड़े की जांच का जिम्मा सरकार ने कोटा विश्वविद्यालय के कुलपित प्रो. पीके दशोरा की अध्यक्षता में गठित समिति को सौंपा है। प्रो. दशोरा के कार्यकाल में ही तत्कालीन कुलसचिव अंबिका दत्त चतुर्वेदी ने विधानसभा और सरकार की ओर से गठित जांच समिति की रिपोर्ट पर स्पष्टीकरण भेजकर माना था कि कोटा विश्वविद्यालय में भी भर्तियों के दौरान नियमों को ताक पर रखा गया, लेकिन अब वह दोषियों पर कार्रवाई करने के बजाय सरकार के आदेश पर अमल करने से कतरा रहे हैं। इतना ही नहीं जिस मामले में कार्रवाई के लिए सरकार विवि प्रशासन ही नहीं कुलाधिपति को भी पत्र लिख चुकी हैं उसकी नए सिरे से जांच के लिए कोटा विवि के अफसर नई जांच कमेटी बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
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