• बहुत रोना आया..

    नक्सलवाद पर माननीय राष्ट्रपति महोदया ने भी आंसू बहाये.... लेकिन कमर तोड़ मंहगाई पर् एक शब्द भी नहीं बोलीं ... बोलतीं भी तो कैसे .... दलितों की जमीन कब्जाने से लेकर राष्ट्रपति बनने तक का कांग्रेसी कर्ज जो उन्हें चुकाना था.... वैसे भी उन्हें एक जमाना गुजर गया होगा आटा-दाल-सब्जी खरीदे हुए .... राष्ट्रपति महोदया जनता का पेट पर सरकारें लात मारेंगी तो नक्सलवाद और आतंकवाद खत्म नहीं होंगे बल्कि और बढ़ेंगे ..... ये आप जैसे महान राजनीतिज्ञ कब समझेंगे.... एनडीटीवी पर कमाल सही कहते हैं पहाड़ के नीचे आना हाथी की मजबूरी है.... सो निभाओ
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