एक आवाज़ जो बचपन से मेरे दिल के सबसे करीब रही.... जिसके एक-एक लफ्ज़ ने
मुझे कई-कई बार संभाला..... कभी तन्हाई के भंवर से निकाला.... तो कभी गमों
में संजीदगी से साथ दिया... कई बार कदम लड़खड़ाये तो बड़ी खामोशी से मेरा
हाथ पकड़ सही राह तक छोड़ा... कई बार रिस्तों की पहेलियां अबुझ बनीं तो उस
गुत्थी को सुलझाया.... दोस्ती के मायने समझाये ... तो कभी मोहब्बत के
रतजगों में जमकर तफरी भी कराई... एक आवाज जो मेरे पहले प्यार की पहचान बनी
ठीक उसी वक्त जब पहली बार मैं कॉफी के स्वाद से रूबरू हुआ था..... बहुत कुछ
है उस आवाज में .... कई बार महसूस हुआ कि आवाज़ तो वह किसी और की है लेकिन
शायद निकली मेरे दिल से है..... वह आवाज धीरे-धीरे मेरे इतने करीब हो गयी
कि उसने 1822 टेप की शक्ल ले ली.... आज वह आवाज बेहद नाजुक दौर से गुजर रही
है .... नाजुक दौर तो कई आये .... अपनों को खोने के दौर ... दूसरों को
अपना बनाने के दौर .... लेकिन वह खामोश नहीं हुई .... पर न जाने क्यों आज
मेरी आंख भर आयी है ... क्योंकि किसी ने उस आवाज के अस्पताल में भर्ती होने
की खबर सुनाई है..... जी हां.... यह आवाज है गजल सम्राट जगजीत सिंह की
आवाज.... ऐ खुदा .... जब्ती-खामोशी तो तेरे कदमों की बांदी है और एक दिन
सबको आनी है ... हो सके तो इस बंदे पर महर कर और उस आवाज को एक बार फिर
गुनगुनाने का .... मेरी तन्हाई में फिर महफिल सजाने का एक मौका और अता कर
........ या खुदा तेरे जो भी नाम है ईश्वर अल्हाह... भगवान ... इस आवाज को
हमें एक बार फिर लौटा दे ..... भले ही हमारी आवाज को खामोशी की चादर ओढ़ा
दे...... हो सके तो दुआ कबूल कर ........ कबूल कर ... कबूल कर ....
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