• दलालमेव जयते ! (1)

    वैधानिक चेतावनी: जो महान आत्माएं भाषा को संसदीय या असंसदीय साबित करने के लिए भटकती रहती हैं उनसे करबद्ध अनुरोध है कि कृपया लेख की इस श्रंखला को न पढ़ें। क्योंकि उनके मायने में श्रंखला की संसदीय शुरुआत असंसदीय भाषा तक पहुंच सकती है। जिससे उनकी भटकती आत्मा रुष्ट हो सकती है और इस गरीब का उनकी आत्मा की शांति के लिए होम स्वरूप सुशब्दों की तेल-मालिश में हाथ तंग है।                 


     व्यक्तित्व:  प्रदीप बनाम सैम वाल्टन


    पहली घटना--


    हम लाये हैं तूफां से कश्ती निकाल के
    इस देश को मेरे बच्चो रखना संभाल के।

    वर्ष 1940 में एक फिल्म आई थी बंधन जिसके लिए राष्ट्रीय कवि प्रदीप (असली नाम रामचंद्र द्विवेदी, जीवन 1915 से 1998 तक) ने गढ़ी थी ये पंक्तियां...जिन्हें बाद में फिल्म जाग्रति (वर्ष 1954) में भी गुनगुनाया गया था.. देश अंग्रेजों की गुलामी से आजाद होने को छटपटा रहा था ... इसलिए चारों ओर राष्ट्रभक्ति का रंग बिखरा पड़ा था और कवि प्रदीप एक से बढ़कर एक शानदार रचनाएं गढ़ने में जुटे थे...राष्ट्र कवि प्रदीप अपनी कविताओं के कारण कई बार अंग्रेजों की यातना के शिकार भी हुए..... वर्ष 1943 में एक फिल्म आई किस्मत जिसके एक गाना बहुत मशहूर हुआ .... वो था ... दूर हटो ए दुनियां वालो ये हिन्दुस्तान हमारा है .....न सिर्फ फिल्म पर प्रतिबंध लगा बल्कि प्रदीप को जेल भी जाना पड़ा..... प्रदीप जी की बात की जाये तो उन्होंने एक से बढ़कर एक शानदार देश भक्ति से ओतप्रोत रचना हमें दी .... जिनमें से एक थी..... ए मेरे वतन के लोगो जरा याद करो कुर्बानी, जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कहानी.......प्रदीप जी का शरीर गुलामी की सोच से हिन्दुस्तान के आवाम को बाहर निकालने का आव्हान करते-करते वर्ष 1998 में शांत हो गया.... प्रदीप जी हमारे बीच अब नहीं है और नई पीढ़ी उन्हें जानती भी नहीं और जानना भी नहीं चाहती.....लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है कि प्रदीप जी को याद नहीं किया जाता या फिर उनकी महान रचनाओं को गुनगुनाया नहीं जाता.... बस इसके  लिए हमने कुछ तारीखें तय कर दीं... मसलन 15 अगस्त, 26 जनवरी और कुछ-कुछ 2 अक्टूबर भी....

     दूसरी घटना-

    सैमं वॉल्टन.... अभी आपके लिए नया नाम हो सकता है... लेकिन सब कुछ ठीक रहा तो एक न एक दिन हिन्दुस्तान में भगवान विश्वकर्मा के स्थान पर इन्ही की पूजा की जायेगी....खैर, आगे बढ़ते हैं ... सैम वॉल्टन .... वर्ष 1940 में अमेरिका के एक पेनी स्टोर में क्लर्क थे... लेकिन उनका नौकरी करने में मन नहीं लगा और उन्होंने अपना जरनल स्टोर खोल लिया.... लेकिन समस्या ठीक वैसी जैसी हमारे यहां मुहल्ले में आमने-सामने खुदी दो दुकानों के बीच होती है ... ग्राहक भी एक जैसा और माल भी एक जैसा फिर सामान बेचें तो कैसे..... सैम ने इसका पहला तोड़ निकाला कि वह सामान बाजार भाव पर यानि सस्ते दाम में देगा.... लेकिन यहां समस्या आई कि जिस दाम पर खरीदा है उसी दाम पर माल बेचा तो वह खायेगा क्या ..... इसका भी उसने तोड़ निकाला और तोड़ यह था कि सामान बनाने वाली छोटी-छोटी फैक्ट्रियों के मालिकों, मजदूरों और किसानों के साथ उसने मेल-जोल बढ़ाना शुरू किया... उन्हें दावतों पर अपने घर बुलाने लगा और जब वो लोग उसके घर आते तो उन्हें मंहगे तोहफे देने लगा......लोग उससे प्रभावित होने लगे और अपने हालात साझा करने लगे.... तब सैम ने अपना ऐजेंडा बड़ी चालाकी के साथ उनके सामने रखना शुरू किया....सैम ने किसानों, मिल मालिकों और मजदूरों को भरोसा दिलाया कि वह उनका माल  खरीद लेगा लेकिन थोक के भाव पर.......इसकी वजह बताते हुए उसने कहा कि आपको सबसे पहले माल बेचने के लिए एजेंट रखने की जरूरत नहीं पड़ेगी... दूसरा माल पहुंचाने के लिए भाड़ा खर्च नहीं करना होगा और तीसरा यह कि आपका माल जब नहीं बिकता है तो वह खराब हो जाता है जो मुझे इकट्ठा बेचने पर नहीं होगा.... छोटे किसानों और मजदूरों ...फैक्ट्री मालिकों को सैम की बात सही लगी और उन्होंने उसके साथ समझौते पर दस्तखत कर दिये..... देखते ही देखते एक क्लर्क की नौकरी छोड़ अपना स्टोर खोलने वाला सैम ....... वॉलमार्ट के नाम से विश्वव्यापी मुनाफाखोर कम्पनी की नींव रख ... सिर्फ 45 साल बाद फोर्ब्स मैग्जीन के मुख्य पृष्ठ पर अमेरिका का सबसे धनी व्यक्ति होने का खिताब लिये खड़ा दिख रहा था......वर्ष 1992 में सैम का इंतकाल हो गया... लेकिन तब तक उनके द्वारा बिछाया गया प्रलोभन का जाल पूरे अमेरिका को अपनी गिरफ्त में ले चुका था.... अमेरिका के 42 राज्यों में 1700 स्टोर्स के साथ वॉलमार्ट लगभग 4.8 अरब डॉलर की सम्पत्ति वाला साम्राज्य बन चुका था.... लेकिन सैम के साथ समझौता करने वाले किसान खेती ही जोतते रह गया और मजदूर मजदूरी ही करता रह गया ......

    नतीजा:-

    दो समकालीन व्यक्तित्व का जिक्र एक साथ इसलिए किया गया क्योंकि दौनों ने ही अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित कर जीवन पर्यंत उसी दिशा में काम किया। एक ने देश को आजादी की कीमत सिखाई, उसे बचाये रखने के लिए चेताया तो दूसरे ने प्रलोभन का ऐसा जाल फेंका कि लोग खुद ही पहुंच गये उसके दर पर अपनी आजादी उसके हाथों में गिरवी रखने।
    प्रदीप तो मातृभूमि का कर्ज चुका कर चले गये लेकिन आजादी मिलने से पहले जाहिर की गयी उनकी चिंता वर्तमान परिदृश्य में भयावह समस्या का रूप अख्तियार कर आम जनमानस के सामने मुह बांये खड़ी है.... जिस कश्ती को लाखों लोगों ने अपनी जान की बाजी लगाकर तूफां से निकाला था वह फिर भंवर में फंस गयी....जिन गोरों को मार-मार कर भगाया था वह एक बार फिर  धंधे के बहाने आ धमके हैं... सैम तो नहीं है लेकिन सैम की कम्पनी वॉलमार्ट का काम करने का तरीका.....  प्रलोभन और लालच देने का उपक्रम.... अब छोटे मजदूर, किसान और मिल मालिकों तक ही सीमित नहीं रहा वह उन राष्ट्रों के आंगन तक पहुंच गया जहां के अगुवा दलाली खाने के लिए पलक- पावड़े बिछाये बैठे थे...........और कथित राष्ट्र दूत अंग्रेज लांड्रियों से कपड़े धुलवाते-धुलवाते अपने लौंड़ों की लुगाई तक वहीं से ले आये .... लुगाई आये और हुक्म न चलाये भला कैसे हो सकता है....सो महाराज रसोई अलग करने का वक्त आ गया है .... जिसे देशी दाल खानी है वो इधर आ जाये और जिसे विदेशी टांग खींचनी है... दलाली खानी है ... सीबीआई से अपने कुकर्मों का लेखा-जोखा मिटवाना है...... वो विदेशी लुगाई की तेल-मालिश में जुट जाये..... हां एक बात और जाते-जाते तेल के साथ चटाई भी लेते जाना....फिलहाल वालमार्ट वाले सबसे ज्यादा डिसकाउंट उसी पर दे रहे हैं .... अंत में दलालमेव जयते !

    एक सवाल:-

    आज सभी समाचार माध्यमों में वॉलमार्ट की लाइजनिंग करने की खबरें आ रहीं है क्या पक्ष और क्या विपक्ष के राजनीतिक दलों, समाचार माध्यमों और खुद को विद्वान और समाज का सेवक कहने वाले कथित लोगों को इसकी जानकारी नहीं थी ?


    नोट:- सवाल का जवाब मिले तो जरूर लिख भेजियेगा और यदि न मिले तो दलालमेव जयते ! के अगले अंक जरूर देखते रहें जहां इस सवाल का जवाब देने का मैं प्रयास करूंगा। हालांकि इसी ब्लॉग के एक लेख 
    'वालमार्ट बनाम ईस्ट इंडिया कम्पनी' (http://drvineetsingh.blogspot.in/search/label/fdi
    में दलाली की इस बात को लगभग एक साल पहले ही उठा चुका हूं। जिसे लेकर मीडिया अब तक आंखें मूंदे रहा
  • 5 टिप्‍पणियां:

    1. Vinay Pathak: vineet ji, badi der se aaye, aaj shayad logon ko yeh batanr ki jada jaroorat nahi hai ki ye nizam agar agle 10 saal aur raha to desh ki kitani durgati hogi....aap ki vyatha jayaj hai.

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    2. Pk Joy · Friends with Ramesh Jain
      डा विनीत जी - बहुत अच्छा लिखा है आपने. वालमार्ट और आरक्षण दोनों ही समयकालीन विषय हैं. आपने राजशाही और तानशाही की तुलना भी की है, मेरा ख्याल है कि democracy (लोकतंत्र ) कब mobocracy (भीड़ तंत्र ) में बदल गया है हम नहीं समझ पा रहे हैं , पर हमारे राजनीतिज्ञ (मैं अपना नेता नहीं मानता) अच्छी तरह समझ गये हैं - डा पवन अग्रवाल
      23 घंटे पहले · पसंद

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    3. Ramesh Jain:- bareilly ek bada kendra raha azadi ke deewano ka,usee maati ki azadi lane wale ke sapno par kya asar hoga,is par apne vichar share karna uchit rahega

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