यह स्लोगन लिखा जाता था। उत्तर भारत के मैनचेस्टर कहे जाने वाले कानपुर के लिए भी यह गर्व की बात थी क्योंकि एल्गिन मिल का संचालन यहीं होता था। पर, धीरे-धीरे चिमनियों ने धुआं उगलना बंद कर दिया। हजारों मजदूर सड़कों पर आ गए। अब राजनेता इन मिलों को चलाने का वादा कर वोटरों के हाथ में उम्मीदों की लॉलीपाप थमा रहे हैं।
भारत का मैनचेस्टर कानपुर
जब कानपुर में बीआईसी-एनटीसी के अलावा निजी क्षेत्र की तमाम कपड़ा मिलें चलती थीं, तो न केवल हर रोज लाखों मीटर कपड़ा तैयार करती थीं बल्कि इनकी धड़धड़ाती आवाज से तमाम धड़कने भी चलती थीं। इनमें काम करना गौरव की बात होती थी। गंगा का किनारा होने से कपास का भरपूर उत्पादन होता था। इससे न केवल किसान बल्कि परोक्ष रूप से हजारों-लाखों लोगों की रोजी चलती थी। हालांकि बीते दो दशक में एक के बाद एक मिले बंद होती चली गईं। नौबत ये आ गई कि आज लाल इमली और जेके कॉटन को छोड़ कोई भी मिल चालू नहीं है। इसके पीछे राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव भी अहम वजह है। एक दशक तक देश पर राज करने वाली पार्टी कांग्रेस की सुप्रीमो सोनिया गांधी और युवराज राहुल के साथ करीब आधा दर्जन मंत्री यूपी से थे बावजूद हाल यह है कि बीते वर्षों में दक्षिण भारतीय मंत्रियों ने अपने क्षेत्रों में एनटीसी की मिलें शुरू करवाईं। मगर कानपुर में सिर्फ घोषणाओं से ही काम चलता रहा है। अब एक बार फिर से यूपी ने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कपड़ा मंत्री संतोष गंगवार से लेकर गृह मंत्री राजनाथ सिंह समेत दर्जनों कद्दावर नेताओं को चुनकर लोकसभा भेजा है। ऐसे में आश एकबार फिर जग उठी है।
वायदे हैं वायदों का क्या
मिल के अधिकारी-कर्मचारी और अन्य मजदूर भी अब नेताओं की पैंतरेबाजी से पूरी तरह वाकिफ हैं। एनटीसी के राजेंद्र त्रिवेदी गुस्से में कहते हैं कि इसे इच्छाशक्ति नहीं बल्कि राजनीतिक नपुंसकता का दर्जा देना चाहिए। केंद्र और राज्य के मंत्री अपना और अपने-अपने क्षेत्रों का विकास करने में जुटे हैं। मिलों की सुधि लेने की किसी को फुर्सत कहां है। एल्गिन के वीरेंद्र दुबे कहते हैं कि जिन्हें मिल चलवाने में सहयोग करना चाहिए, वे इसकी जमीनें बिकवाकर कमाई के चक्कर में हैं। प्रबंधन की साठगांठ से मिलें लिक्विडेशन में जाना शुरू हो गई हैं। लाल इमली के राजू ठाकुर बोले, रिवाइवल प्लान पास कराने का श्रेय लूटने के लिए नेताओं ने फूलमाला डलवाकर अपना स्वागत करा लिया मगर स्थिति तो और बदतर हो गई। तनख्वाह तक का ठिकाना नहीं है। बीआईसी के खलील अहमद के मुताबिक मजदूरों का शहर होने के बावजूद किसी पार्टी के एजेंडे में इनका का पक्ष नहीं है।
रिवाइवल प्लान का लॉलीपॉप
- दस साल पहले एल्गिन-एक का 105 करोड़ का रिवाइवल प्लान भेजा गया। अभी तक कुछ नहीं हुआ।
- एक वर्ष पूर्व लाल इमली का रिवाइवल प्लान मंजूर हुआ लेकिन तमाम शर्तों के चलते एक रुपया भी नहीं मिला।
- कानपुर टेक्सटाइल मिल के रिवाइवल प्लान को भी कई साल पहले कपड़ा मंत्रालय भेजा गया, जो ठंडे बस्ते में है।
- कपड़ा सचिव, एनटीसी चेयरमैन ने एक मिल चलाने की बात कही। इस घोषणा तीन साल बीतने जा रहा है।
सुनहरे दिन
- कपड़ा मिलों में हर दिन लगभग 11 लाख मीटर कपड़ा बनता था।
- डेढ़ लाख मजदूर इन मिलों में काम करते थे।
- 1967 में एल्गिन को दुनिया का बेहतरीन टेरीकॉट बनाने का पुरस्कार मिला।
.........................मौजूदा हाल
- सिर्फ लाल इमली मामूली
- उत्पादन कर रही है।
- इनमें पांच हजार के करीब
- मजदूर कार्यरत हैं।
- कपड़े का निर्यात न के
- बराबर रह गया।
बंदी के कारण..............................
मिलों का
आधुनिकीकरण
- न करना
- ट्रेड यूनियनों का
- अड़ियल रवैया
- नियुक्तियों में हेराफेरी व
- पक्षपात
....................आशा की किरण
-एनटीसी के पास सोलह सौ
करोड़
रुपए की सरप्लस रकम है।
इसके 10 प्रतिशत से एक मिल
चल सकती है।
-लाल इमली के रिवाइवल प्लान
में 313 करोड़ की रकम कैबिनेट ने
पास कर दी थी, मगर इसमें फ्री होल्ड करके 150 करोड़ रुपए की
रकम पहले जुटाने की शर्त है।
प्रमुख मिलें और उनकी क्षमता
मिल स्थापना कर्मचारी तकुए लूम
अथर्टन 1923 3000 42352 898
लक्ष्मी रतन 1937 4200 58852 977
म्योर 1874 6300 83258 1637
विक्टोरिया 1920 4770 70072 1333
स्वदेशी कॉटन 1911 10000 126082 2083
एल्गिन-दो 1882 3640 46322 972
कानपुर टेक्सटाइल 1922 2099 24028 591
एल्गिन-एक 1864 5218 53444 1198
जेके कॉटन 1933 1500 27200 --
जेके कॉटन स्पिनिंग-वीविंग 1921 3200 47300 --
.............हर बार मिला एक आश्वासन
- -मार्च 1998 में फूलबाग मैदान में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने मिलें बंद न होने का आश्वासन दिया था।
- -अक्टूबर 1999 में मोतीझील मैदान की रैली में अटल ने कहा था कि उद्योग कारखाने बंद नहीं होने देंगे। एक मिल जरूर चलाएंगे।
- -मई-2004 को लोकसभा चुनाव में मनमोहन सिंह ने गोविंदनगर की सभा में कहा था कि सरकार बनी तो बंद मिलों को जरूर चलाएंगे।
- -2009 में मनमोहन सिंह ने फिर से बीआईसी की एक मिल चलाने की बात कही। एनटीसी के पास संसाधन अधिक होने के चलते बीआईसी को उसके अधीन कर दिया जाएगा।
- -जून 2004 को श्रीप्रकाश जायसवाल ने गृह राज्यमंत्री बनने पर चिट्ठी लिखी थी, प्रधानमंत्री व कपड़ा मंत्री को वादा याद दिलाया था कि एक मिल जरूर चलाई जाए।
बोल बचन
अटल बिहारी वाजपेयी जब प्रधानमंत्री थे, तब शहर की बंद मिलों को चलवाने की पूरी कोशिश हुई थी। मामला जब हल होने के नजदीक पहुंचा तो सरकार चली गई। मोदी सरकार में फिर से मिलें चलवाई जाएंगी।
-विजय सेंगर, भाजपा नेता
बंद मिलों को खुलवाने के लिए सपा ने समय-समय पर धरना-प्रदर्शन किए हैं। नेताओं को ज्ञापन दिए हैं। मिलों के लिए संघर्ष जारी रहेगा। केंद्र पर दबाव बनाने के सार्थक प्रयास किए जाएंगे।
-चंद्रेश सिंह, सपा नेता
कांग्रेस सरकार की उदासीनता से कपड़ा मिलें बंद हुई हैं। मिलें चलवाने की कोशिश की गई, मगर केंद्र से सहयोग नहीं मिला।
-एसपी टेकला, बसपा नेता
कम्युनिस्टों की वजह से मिलें बंद हुईं। आधुनिकीकरण न होना भी प्रमुख वजह है। एक मिल को खुलवाने का प्रस्ताव पास कर दिया गया था, सपा की यूपी सरकार में मामला फंसा दिया था।
-श्रीप्रकाश जायसवाल, पूर्व केंद्रीय मंत्री
-श्रीप्रकाश जायसवाल, पूर्व केंद्रीय मंत्री
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