पतंग काटते-काटते अब मांझा जिंदगी की डोर काटने लगा है। पड़ोसी मुल्क की यह कातिल इजाद दो सदियों के सुनहरे मांझा इतिहास पर बदनुमा दाग बन चुकी है। कम दाम की आड़ में सूती धागे की जगह नायलॉन और प्लास्टिक का धागा लोहे और कांच के बुरादे के साथ मिलकर ‘खामोश कातिल’ की शक्ल अख्तियार कर चुका है। 1इतिहास गवाह है कि दुनिया भर के पतंगबाज बरेली के मांङो के सदियों से मुरीद रहे हैं। तारीखें इस बात की भी गवाह हैं कि दो सौ साल से ज्यादा के इस सफर में बरेली के मांङो ने उसे इजाद करने वाले कारिंदों की उंगलियां भले ही जख्मी कर दीं हों, लेकिन कभी किसी का गला नहीं रेता।
आसमान में पेंच लड़ाने के दौरान पतंगें जरूर काटी हैं, लेकिन राह चलते किसी इन्सान का गला नहीं रेता। वजह थी, मांझा बनाने में इस्तेमाल होने वाला धागा और उसे धार देने वाला मसाला। जरा सा पानी पड़ते ही यह मसाला सील जाता और धागे पर जोर पड़ते ही वह टूट जाता। आखिर क्या वजह रही कि सस्ता आने वाला चाइनीज मांझा कातिल बन गया।
सूती धागे और उस पर चढ़ाए जाने वाला मसाले की कीमत ज्यादा होती है। एक चरखी को बनाने में इसकी लागत दो सौ रुपये से लेकर छह सौ रुपये तक आती है। वहीं चीनी मांझा महज 75 रुपये से लेकर 150 रुपये तक मिल जाता है। इसकी कीमत कम होने की सबसे बड़ी वजह है मांङो में सूती धागे का इस्तेमाल न होना। मंहगा चायनीज मांझा नायलॉन से बना होता है। वहीं सस्ता वाले मांङो में धागे की जगह प्लास्टिक के तार का इस्तेमाल किया जाता है। इसे धार देने के लिए लोहे और कांच के बुरादे के साथ ही खतरनाक केमिकल भी मिलाए जाते हैं। पतंग कटने के बाद गिरा चायनीज मांझा टूटता नहीं और यह खींचने पर खिंचता जाता है। वहीं इस पर लगी लोगे और कांच की धार इसे हथियार में तब्दील कर देती है। शरीर के किसी भी हिस्से के संपर्क में आते ही उसे काट डालने लायक पूरी ताकत इस कातिल मांझे में होती है। यही कारण है कि मांङो से कई लोग घायल हो चुके हैं। शहर के किला आदि इलाके में आए दिन घटनाएं होती रहती हैं।
सूती धागे और उस पर चढ़ाए जाने वाला मसाले की कीमत ज्यादा होती है। एक चरखी को बनाने में इसकी लागत दो सौ रुपये से लेकर छह सौ रुपये तक आती है। वहीं चीनी मांझा महज 75 रुपये से लेकर 150 रुपये तक मिल जाता है। इसकी कीमत कम होने की सबसे बड़ी वजह है मांङो में सूती धागे का इस्तेमाल न होना। मंहगा चायनीज मांझा नायलॉन से बना होता है। वहीं सस्ता वाले मांङो में धागे की जगह प्लास्टिक के तार का इस्तेमाल किया जाता है। इसे धार देने के लिए लोहे और कांच के बुरादे के साथ ही खतरनाक केमिकल भी मिलाए जाते हैं। पतंग कटने के बाद गिरा चायनीज मांझा टूटता नहीं और यह खींचने पर खिंचता जाता है। वहीं इस पर लगी लोगे और कांच की धार इसे हथियार में तब्दील कर देती है। शरीर के किसी भी हिस्से के संपर्क में आते ही उसे काट डालने लायक पूरी ताकत इस कातिल मांङो में होती है। यही कारण है कि मांङो से कई लोग घायल हो चुके हैं। शहर के किला आदि इलाके में आए दिन घटनाएं होती रहती हैं।
सदियों से बरेली की शान रहा मांझा पूरी तरह प्रकृति के अनुकूल है। इसे बनाने के लिए मोटे सूती धागे पर खास लेप चढ़ाया जाता है। इस लेप को सुहागा, नीला थोथा, लोहवान, चावल की लुग्दी, मांढ़, सरेस, प्राकृतिक रंग और ईसबगोल की भुसी का इस्तेमाल किया जाता है। इन सभी चीजों को मिलाकर लुग्दी तैयार की जाती है और उसे सादा धागे पर रगड़-रगड़ कर चढ़ाया जाता है।सूती धागे और उस पर चढ़ाए जाने वाला मसाले की कीमत ज्यादा होती है। एक चरखी को बनाने में इसकी लागत दो सौ रुपये से लेकर छह सौ रुपये तक आती है। वहीं चीनी मांझा महज 75 रुपये से लेकर 150 रुपये तक मिल जाता है। इसकी कीमत कम होने की सबसे बड़ी वजह है मांङो में सूती धागे का इस्तेमाल न होना।
..................चीनी मांझा क्यों बना कातिल
मंहगा चायनीज मांझा नायलॉन से बना होता है। वहीं सस्ता वाले मांझे में धागे की जगह प्लास्टिक के तार का इस्तेमाल किया जाता है। इसे धार देने के लिए लोहे और कांच के बुरादे के साथ ही खतरनाक केमिकल भी मिलाए जाते हैं। पतंग कटने के बाद गिरा चायनीज मांझा टूटता नहीं और यह खींचने पर खिंचता चला जाता है। वहीं इस पर लगी लोहे और कांच की धार इसे हथियार में तब्दील कर देती है। शरीर के किसी भी हिस्से के संपर्क में आते ही उसे काट डालने लायक पूरी ताकत इस कातिल मांझे में होती है। यही कारण है कि मांझे से कई लोग घायल हो चुके हैं। शहर के किला आदि इलाके में आए दिन घटनाएं होती रहती हैं।सूती धागे और उस पर चढ़ाए जाने वाला मसाले की कीमत ज्यादा होती है। एक चरखी को बनाने में इसकी लागत दो सौ रुपये से लेकर छह सौ रुपये तक आती है। वहीं चीनी मांझा महज 75 रुपये से लेकर 150 रुपये तक मिल जाता है। इसकी कीमत कम होने की सबसे बड़ी वजह है मांझे में सूती धागे का इस्तेमाल न होना।
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