बात मार्च 2014 की है... तारीख याद नहीं... शायद 12 या 13 रही होगी... मोबाइल स्क्रीन पर सुपर वीआईपी नंबर फ्लैस हुआ... लास्ट की छह-सात डिजिट सेम थीं... नंबर कुछ जाना पहचाना सा लगा... लेकिन यह तय नहीं था कौन हैं... फोन उठाते ही जो आवाज खनकी उसे पहचानना नामुमकिन था... भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की गुजरात इकाई के एक दिग्गज नेता थे दूसरी ओर... जिन दिनों दिल्ली में दरबार सजता था... तमाम बैठकी होती थीं उनके साथ...
नेताजी- देहरादून से बरेली कितना दूर है...
मैंः- पता नहीं... कहें तो पता कर दूं
नेताजी- नहीं... आज बरेली आए थे सोचा आपसे मिल लें
(मैं थोड़ा सोच में पड़ गया, कि पता देहरादून का पूछ रहे हैं या मेरे घर का)
मैंः- भाई साहब मैं तो बरेली में ही हूं... देहरादून में कहां तलाश रहे हैं...
नेताजीः- अरे वो तो पता है, लेकिन पहले आपसे मिलना है फिर आपके साथ देहरादून जाना है...
मैंः- भला वो क्यों, अचानक तो संभव नहीं
नेताजी- भाई साफ सी बात ये है कि हरीश रावत जी से मिलना है
मैं- अभी अचानक, लेकिन अब वो मुख्यमंत्री हैं... सीएम इन वेटिंग नहीं... जो भाजपा केंद्रीय कार्यालय के सामने से गुजरते समय उनके घर भी ढोक लगा आएं..
नेताजीः- पता है भाई, इसलिए तो आपको साथ ले जाना चाहते हैं...
मैंः- भाई साहब मैं कोई गेट पास थोड़े ही हूं... जो दिखाया और दाखिल हो गए
नेताजीः- अरे चलेंगे तो सब समझ आ जाएगा...
मैंः- अच्छा ठीक है, पहले आप मिलो फिर तय करते हैं
(नेताजी तो नहीं आए उनका फिर से फोन आ गया)
नेताजीः- थोड़ा फस गए थे, इसलिए आप तक नहीं पहुंच सके
मैं- कोई बात नहीं...अब क्या कार्यक्रम है
नेताजी- किसी तरह समय दिलवा दीजिए, सुना है आपको जानते हैं हरीश जी
मैंः- नहीं वो मुझे सीधे नहीं जानते, मेरे चाचा जी के पुराने मित्रों में से हैं उस नाते वो मुझे सम्मान देते हैं...
नेताजीः- कई बार देखा है दिल्ली में हमने उनके साथ आपको... आधी-आधी रात चले आते थे वो आपके बुलावे पर
मैंः- भाई साहब वो बात और है, वो व्यक्तिगत मामला है, लेकिन मैं ये नहीं समझ पा रहा कि आप चाहते क्या हैं
नेताजीः- एक मुलाकात
मैंः- मेरे ही माध्यम से क्यों
नेताजीः- क्योंकि आसानी से हो सकती है, बिना किसी को पता चले
(मैं थोड़ा चौंका, कि कहीं नेताजी पार्टी बदलने की तो नहीं सोच रहे)
मैंः- पार्टी बदलने जा रहे हैं क्या, गुजरात की जगह उत्तराखंड से राज्यसभा जाने का इरादा है क्या
नेताजीः- पार्टी नहीं, पॉलिसी बदलवानी है...
(मैं अवाक रह गया, कि भाजपाई कांग्रेसियों से मिलकर पॉलिसी कैसे बदलवा सकते है, हालांकि दिल्ली में बहुत कुछ देख सुन चुका था, यह सब होते हुए)
मैंः- कैसी पॉलिसी
नेताजीः- वाइन पॉलिसी
मैंः- लेकिन हरीश जी को सीएम बने तो अभी एक महीना नहीं हुआ...
नेताजीः- तभी तो... हम उनके काम आ सकते हैं... उनको हमारी जरूरत है
मैः- कैसे
नेताजीः- पॉलिसी बदलवा दें... पैसा और सपोर्ट दोनों मिलेगा
मैंः- मुझे नहीं लगता यह संभव है... जितना मैं उन्हें पिछले दस-पंद्रह साल में समझ सका हूं... वो इस रास्ते के रहगुजर नहीं
नेताजीः- सब हो जाते हैं साहब, कोशिश तो करिए... अब दोस्त भी कहते हैं और कोई मदद भी नहीं करते
(मुझे लगा कि कहीं कुछ लोचा है... मन नहीं मान रहा था, लेकिन नेताजी बहुत अच्छे मित्रों में से थे... और इंसान भी अच्छे थे सो असमंजस में फंस गया)
मैंः- मैं आपको समय दिलवाने की कोशिश करता हूं...
नेताजीः- शाम को फोन करता हूं...
(मैने सीधा हरीश जी से बात करने के बजाय हम दोनों के अभिन्न मित्र मयूरविहार फेज थ्री निवासी एक और रावत साहब को फोन किया)
मैंः- कहां हैं साहब
रावत जीः- हरिद्वार हूं... भाई साहब के साथ
मैंः- आपसे कब और कैसे मुलाकात होगी...
रावत जीः- आप तो बरेली ही हो ना...
मैंः- हां
रावत जीः- हरिद्वार ही आ जाओ फिर आप... गाड़ी भिजवाए देते हैं...
मैंः- नहीं... इतना वक्त नहीं... छुट्टी नहीं मिलेगी अचानक
रावतजी ः- तो चलो कल हम ही आए जा रहे हैं
मैंः- ये ठीक है
(रावत जी दूसरे दिन तड़के ही बरेली पहुंच गए... सिटी मजिस्ट्रेट साहब का नंबर मोबाइल पर चमका तो पता चला)
सिटीः- अबे कहां हो
मैंः- भैया इस वक्त तो बिस्तर पर हूं
सिटीः- रावत जी याद कर रहे हैं...
मैंः- कौन रावत
सिटीः- हरिद्वार से जिन्हें तुमने बुलाया था कल
(तब समझ आया कि वो पहुंच गए... कुछ वक्त मांगा और मिलने चला गया)
मैंः- कुछ लोग सीएम साहब से मिलना चाहते हैं...
रावत जीः- हां तो ले जाओ ... चाहे जब मिलवा दो..
मैंः- नहीं बात इतनी सीधी सी नहीं है
रावत जीः- क्या दिक्कत है तुम्हें
मैंः- एक तो वह भाजपाई हैं... दूसरा मोदी हैं, तीसरा गुजरात से हैं और चौथा... वाइन पॉलिसी पर बात करना चाहते हैं...
(एक के बाद एक झटके थे रावत जी के लिए)
रावत जीः- कौन लोग हैं...
मैंः- भाजपा गुजरात इकाई में बड़े पदाधिकारी हैं... ज्यादातर वक्त दिल्ली में गुजरता है
रावतजीः- किस गुट से हैं
मैंः- पहली मुलाकात संजय जोशी जी के घर हुई थी... लेकिन भक्त मोदी जी के हैं...
रावत जीः- लेकिन उत्तराखंड में तो कोई वाइन पॉलिसी एज सच है ही नहीं... जिसे बनाया या बदलवाया जा सके
मैंः- मुझे नहीं पता जो बात थी सो आपको बता दी
रावतजीः- देखो भाई साहब (सीएम यूके) इन सब पचड़ों में न कभी पड़े हैं और ना ही पड़ेंगे, लेकिन फिर भी पता करना होगा ये लोग क्या चाहते हैं और कौन हैं...
मैंः- अभी बात करता हूं
(सर्किट हाउस से ही मोदी जी को फोन किया)
मैंः- जी भाई साहब... वहां तो कोई एज सच पॉलिसी ही नहीं
मोदीः हां... यही तो उसे बदलवा कर यूपी जैसा करवाना है...
मैंः- सारे ठेके एक ही शख्स के...
मोदीः- हां बिल्कुल वैसे ही... और जिसका जो हिस्सा होगा दे देंगे
मैंः- ठीक है बताता हू
(रावत जी की ओर मुखातिब होते हुए)
मैंः- यूपी की तरह बदलाव.... एक शख्स के पास ही हों सारे ठेके
रावतजीः- नहीं वहां ऐसा नहीं होने दे सकते हम लोग
मैंः- पता नहीं आप जानो औ मोदी जी जाने
रावतजीः- साफ मना कर दो नहीं मिलना... हरीश जी पर तमाम दाग होंगे... लेकिन चरित्र हनन का नहीं... वो इसका खास ख्याल रखते हैं...
मैंः- पता है मुझे...
रावतजीः- ठीक है ... नहीं मिलेंगे हम उनसे
मैंः- मना कर देता हूं...
मैने फोन करके उन लोगों को मना कर दिया, लेकिन उसके बाद भी कई दिनों तक लालच से भरे फोन आते रहे, लेकिन बुधवार को अचानक झटका लगा जब भाजपा ने उत्तराखंड वाइन पॉलिसी स्टिंग का खुलासा किया।
मैं अवाक रह गया... सीएम तो नहीं फंसेलेकिन उनका स्टाफ लालच में फंस गया...
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के तौर पर नहीं सिर्फ इंसान के तौर पर जिससे कि पारिवारिक रिस्ते भी थे... मुझे हरीश रावत पर गर्व हुआ... कि उन्होंने अरबों रुपये का लालच ठुकरा दिया... लेकिन यूपी की तरह शराब की सारी दुकानोंको माफियाओं के हाथों में नहीं जाने दिया.... अब इस स्टिंग का अंजाम कुछ भी हो... लेकिन मुझे उन पर गर्व है और साथ ही भाजपा को सबसे अलग विचारधारा वाली पार्टी मानने का भ्रम टूटने का दुख भी। अपनी कीचड़ को सही साबित करने के लिए दूसरे के घर में कीचड़ फेंकने की उनकी यह करतूत पसंद नहीं आई... क्या कुछ कांग्रेसी भाजपा में डीलिंग कर रहे हैं या फिर कुछ भाजपाई कांग्रेस चला रहा हैं यह समझना बाकी है...
आज की तूफानी चाय चर्चा को यहीं विराम। फैसला आपके हाथ....।
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