मतदाताओं ने 'राइट टू रीकॉल' से प्रधान को हटाया
दिल्ली के शोर से दूर हटकर एक खबर आ रही है, उत्तर
प्रदेश के सुदूर देहाती जनपद बस्ती से... यहां के एक अति पिछड़े गांव फुलवरिया के वासिंदों ने नकारा प्रधान से आजिज आकर उसे कुर्सी से उतार फेंका... इस काम के लिए
उन्होंने हथियार बनाया राइट टू रीकॉल कॉल को... उत्तर प्रदेश ही क्या, सम्पूर्ण भारत
का यह अपने आप में पहला और अनूठा मामला है जहां किसी जनप्रतिनिधि को हटाने के लिए
इस अधिकार का इस्तेमाल किया गया... और वह भी मतदान करके.....जहां प्रधान के
काम से असंतुष्ट 809 मतदाताओं ने उसे हटाने के लिए मतदान किया.... वहीं 239 मतदाताओं
ने प्रधान के बचाव में वोट डाला।
राष्ट्रीय परिदृश्य में भले ही राइट टू रीकॉल अभी तक रद्दी के पुलंदे का हिस्सा हो लेकिन ग्राम पंचायतों को मिले इस अधिकार के इस्तेमाल का नायाब नमूना यहां के जागरुक मतदाताओं ने पेश किया है... फुलवरिया का ग्राम प्रधान जिन मतदाताओं के वोट की बदौलत कुर्सी हांसिल करने में कामयाब हुआ था उन्हीं मतदाताओं ने उसकी कुर्सी छीन भी ली....

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2010 में हुए पंचायत चुनाव में इस ग्रामसभा में प्रधान का पद महिला के लिए आरक्षित कर दिया गया। इस सीट पर रामपति देवी 812 वोट देकर विजयी हुई थीं। दो वर्ष के भीतर ही मतदाता ऐसे ऊबे कि प्रधान को पद से हटाने की मुहिम छेड़ दी। 24 दिसंबर को अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान के जरिये उन्हें पदच्युत कर दिया गया।
अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान के लिए प्रभारी बनाए गए सहायक खंड विकास अधिकारी कुमार अमरेंद्र ने बताया कि ग्राम प्रधान को हटाए जाने के बाद गांव के विकास कार्यो की देखरेख के लिए अभी तीन सदस्यीय कमेटी गठित की जाएगी, उसके बाद जल्द ही फिर से नये प्रधान के लिए चुनाव कराया जायेगा।
वाकई में फुलवरिया के वासिंदों ने अपने अधिकारों का प्रयोग कर देश और दंभी जनप्रतिनिधियों के आगे राष्ट्रव्यापी चुनौती का बिगुल फूंक दिया है। सलाम फुलवरिया के वासिंदों को।
An Positive Approach!
जवाब देंहटाएंAtul Bansal:- Ek Saarthak Pehal!
जवाब देंहटाएंBabban Rai:- shayad ye ek naye yug ki shuruvaat ho sakti hai
जवाब देंहटाएंVinay Pathak:- नये युग की शुरुआत है....
जवाब देंहटाएंManoj Dixit:- isiliy to manmohan singh rajysabha sy chun ker aaty hy isi ko kehty hy advance planing
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