कमिश्नर के रविंद्र नाइक ने रुहेलखंड में लोगों की जान से खिलवाड़ करने वाले खूनी चीन के मांझे पर प्रतिबंध लगा दिया। उन्होंने मंडल के सभी डीएम को इस संबंध में कार्रवाई के निर्देश भी दिए। बरेली सहित आसपास के जिलों में चीनी मांझे का कारोबार खूब होता है। घरेलू मांझा उद्योग का खून चूसने वाला यह मांझा लोगों की जान का भी दुश्मन है। बरेली में ही इससे कई लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा तो कई लोग घायल हुए। समय समय पर इसके खिलाफ अभियान चलाए गए। इस पर प्रतिबंध की भी बात हुई, लेकिन सब कागजी साबित हो कर रह गए। सामाजिक सरोकारों से ताल्लुक रखते हुए इसे मुद्दा बनाया और सोमवार से खूनी मांझे के खिलाफ अभियान चलाया। मांझे से घायल लोगों के परिवारों के साथ ही कई संस्थाओं ने भी इसकी सराहना कर अभियान को ताकत दी। कमिश्नर के रविंद्र नाइक ने भी संबंधित खबरों का संज्ञान लिया और इसे लोगों की जान का दुश्मन करार दिया। चीनी मांझे से हो रहे हादसों पर वे गंभीर हुए और इसे रुहेलख्रंड में प्रतिबंधित करने का फैसला किया। उन्होंने मंडल के सभी डीएम को पत्र लिख कर कार्रवाई करने का निर्देश दिया है।
‘कातिल’ को नहीं मिल सकी ‘मुकम्मल’ सजा

सबसे पहले गुजरात सरकार ने लगाई रोक
पड़ोसी मुल्क चीन से कातिल मांझे की शक्ल में आई मौत पर सबसे पहले गुजरात सरकार ने लगाम कसी। मकर संक्रांति से पहले ही गुजरात का आसमान पतंगों से पट जाता है, लेकिन साल 2008 में अचानक पक्षियों की मौत में इजाफा होने लगा। नवंबर के आखिरी सप्ताह में तो गुजरात के प्रमुख शहरों से लोगों की गर्दनें कटने की खबरें बड़ी तेजी से आने लगीं। सरकार ने आनन-फानन में मामले की जांच के आदेश दिए और जब जांच पूरी हुई तो पता चला कि चीन के खूनी मांझे ने ही हजारों पक्षियों को मौत के घाट उतारा है। इसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने 4 दिसंबर 2009 को गुजरात में चीनी मांझे के इस्तेमाल पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया।
सरकार को नहीं सुनाई देती चीखें
गुजरात, राजस्थान और दिल्ली ही नहीं महाराष्ट्र की सरकार भी चीनी मांझे पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा चुकी है। हालांकि उत्तर प्रदेश के तमाम शहरों में चाइनीज मांझे के कारण लोगों की मौत के सैकड़ों मामले बीते चार-पांच साल में दर्ज किए जा चुके हैं। बावजूद इसके सूबे की सरकार को मासूमों की चीखें सुनाई नहीं देतीं। सरकार ने कातिल मांझे के खिलाफ अभी तक कोई कदम नहीं उठाया। दीगर बात यह है कि बीते सालों में बनारस, मेरठ, आगरा, बिजनौर, सहारनपुर और बरेली का पुलिस-प्रशासन कोई हादसा होते ही चीनी मांझे पर प्रतिबंध लगाने की बात तो करता है, लेकिन मामला ठंडा पड़ते ही बस भूलते रहे। इस बार मंडल में प्रतिबंध लगा है तो उम्मीद बढ़ी है।राज्य सरकारों या जिला प्रशासन के प्रतिबंध के बावजूद चीनी मांझे की खरीद-फरोख्त पर पूरी तरह लगाम कस पाना संभव नहीं है। ‘कातिल’ मांझे को तब तक मुकम्मल सजा नहीं मिलेगी जब केंद्र की सरकार चीन से इसके आयात पर प्रतिबंध नहीं लगाती।
इंसाफ बाकी है..........

बहुत अच्छी प्रस्तुति।
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