• कोरोना किचिन! गोभी और पतीला...


     गोभी के टुकड़े हो चुके थे... एक एक टुकड़े को बड़ी बारीकी से जांचा और परखा गया... कीड़े पसंद नहीं हैं न हमें जिंदगी में, लेकिन साहेब ये जो जिंदगी है न वो खुद इतना बड़ा कीड़ा है कि बिना कीड़े किए चलती ही कहां हैं... हां, उन्हें निकालने के लिए अच्छे से काटना, फिर छांटना और फिर जांचने का काम हम जारी रखते हैं... ताकि गोभी के साफ फूल हम चुन सकें...!
    लेकिन, हम इतने पर भी कहां मानने वाले हैं... हमें अब भी तसल्ली नहीं होती और हम एक फ्राईपेन उठाते हैं... उसे तब तक पानी से भरते हैं जब तक उसके मुंह तक न आ जाए और फिर कटी हुई... छंटी हुई गोभी के टुकड़ों को उसके हवाले कर देते हैं... लेकिन... लेकिन क्या... हम इतने पर भी मानने वाले कहां... अब हम उस फ्राईपेन को भी आग के हवाले कर चूल्हे पर चढ़ा देते हैं...!! कीड़ों को जिंदगी से बाहर निकाल फेंकने का यह क्रम तब तक चलता रहता है जब तक कि हम मुतमईन न हो जाएं कि सारे कीड़े मर गए...!!!
    कीड़े तो कट-पिट और जल भुन कर मर जाते हैं, लेकिन हमारे चुनने का क्रम कभी खत्म नहीं होता... अनवरत जारी रहता है... यह ऐसा क्रम है जो किसी रोज गोभी तो किसी रोज बैंगन, टंडे और कभी आलू के साथ जारी रहता है...! लेकिन, असल जिंदगी के कीड़े कभी निकल पाते हैं क्या... कभी नहीं...! वो जिंदगी ही क्या जिसमें कोई कीड़े न हों... सीधी, सपाट और सरल चीजें हमें रास आती कहां हैं... हमें तो जूझना बेहद भाता है... कभी औरों से तो कभी खुद से...!!!
    उबलते हुए पानी में घुल कर हलवा होने से डर रही गोभी पतीले से पूछ बैठती है... सुनो भाई! क्या मजा आता है तुम्हें दूसरों को जलाने, पकाने और सुलगाने में...?

    गोभी का सवाल सुन पतीले ने ठंडी आह भरी... कुछ देर खामोश रहने के बाद बोला... सुनो, कभी कब्र से पूछा है कि वह कैसी है... हमेशा लोग मुर्दे की ही क्यों फिक्र करते हैं... शायद हमारा स्वभाव ही ऐसा है कि लोग खत्म होने वाली चीजों की ज्यादा चिंता करते हैं और जो ज्यादा दिनों तक... ज्यादा लंबा और ज्यादा भरोसे के साथ साथ दे सकें उन्हें तवज्जो ही नहीं देते... इन चीजों की कमी तब खलती है जब वह टिकाऊ चीजें थक हार कर साथ छोड़ देती हैं... आखिर वह भी तो चीजें हैं कितना घिसेंगी यार... लेकिन, इसका मतलब यह नहीं कि वह जलती नहीं, पिघलती नहीं... मरती नहीं और सुलगती नहीं...!!
    हां, अपने दर्द को कभी बयां नहीं करतीं... यह सोचकर कि हमारा तो काम ही साथ देना है... जब तक खुद का वजूद न मिटा दें...!! सुनो गोभी, तुम इंसान की क्षुधा शांत करोगी... खुद को खत्म करके, लेकिन इंसान तो इतना भूखा है कि उसका पेट कभी भरता ही नहीं... कुछ देर बाद फिर खाली हो जाता है... नई मांग के साथ... आज तुम हो तो कल आलू, टमाटर, प्याज या पनीर होगा... लेकिन, उसे चाहिए कुछ न कुछ...!!! और जब भी तुम सबको बनाना पकाना पड़ता है तो वह पहले तुम्हें जरूर याद करता है, लेकिन उसके ठीक बाद मुझे ही तलाशता है... नहीं पक सकतीं तुम सब मेरे बगैर... और तुम्हें पकाने के लिए मुझे घंटों लाल लपटों के घेरे में झुंकना पड़ता है... कभी सोचा है कैसी होती है वह चूल्हे की कभी तेज तो कभी मंद होती आग... मेरा रोम रोम जल उठता है... उस तपिश को बर्दास्त करता हूं जिस पर यदि तुम्हें झोंक दिया जाए तो वजूद ही मिट जाए पूरा... लेकिन न सिर्फ तुम्हारा वजूद बचाने की मेरी जिम्मेदारी होती है, बल्कि तुम्हारे स्वाद को बढ़ाकर तारीफ के कसीदे भी पढ़वाने होते हैं... और तुम्हें जलने से बचा कर इंसान की जीभ से लेकर उसके पेट तक की जरूरत को पूरा करना होता है...!!
    सुनो, ये जो इंसान है न वह इतना स्वार्थी है यार कि जीभ गर साथ न दे तो पेट नहीं भरता और पेट भर जाए तो इसकी जीभ साथ छोड़ देती है...। ऐसे में सोचो कि क्या हो जो मैं इस पूरी कवायद से ही निकल भागूं...!!!
    निकल भागूं... अरे ऐसे कैसे हो सकता है... मैं जल जाऊंगी... मेरे साथ मसाले भी स्वाह हो जाएंगे... आग लग जानी हैं... पतीले तुझे... और तूने सोच कैसे लिया ये इंसान तुझे छोड़ने वाला है... उठा कर ही फेंक देना है तुझे तो... और इसके बाद भी सही सलामत बच गया तो मौटी ईंट या फिर तारों के गुच्छे से इतना घिसेगा कि तेरा तो पूरा जिस्म ही छिल जाना है... ऊपर से नींबू मिला बर्तन धोने का साबुन अलग से छिड़क देगा... सोच ले तेरा क्या होगा कालिया...!!
    खौफ से थर्राती गोभी की बातें सुन फ्राईपेन जोर जोर से हंसने लगा... और बोला, महज एक ख्याल से तुम्हारा यह हाल है तो सोचो मैं गर वाकई में रसोई से निकल भागूं तो क्या हाल होगा तुम्हारा... लेकिन, चिंता न करो मैं तुम्हारी तरह महज एक पहर तक ही इंसानों का साथ नहीं देता... कई मर्तबा तो पीढ़ियों तक चलता हूं... इसीलिए मैं पतीला हूं और तुम महज गोभी...!!

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