सत्ता, सेक्स और इस्तीफे का रिस्ता बेहद पुराना है। राजनीतिक गलियारों की चकाचौंध “माननीयों” को कब इस कदाचार की राह पर ले जाती है, पता ही नहीं चलता और जब पता चलता है तब तक वह अपने पद और प्रतिष्ठा दोनों से हाथ धो बैठते हैं। बस पीछे छूट जाती है बदनामी की फेहरिस्त जिसमें कोई अपना नाम तो शामिल नहीं कराना चाहता लेकिन जब शामिल हो जाता है तो यही कहता है कि काश अपने पूर्ववर्तियों से कुछ सबक हासिल कर लिया होता।
“पार्टी विद डिफरेंस” यानि भाजपा का कर्नाटक अध्याय उसे लगातार शर्मशार करने पर उतारू है। पहले भ्रष्टाचार के आरोपों में रेड्डी बंधुओं से नाता न तोड़ने की जिद और फिर इन्हीं आरोपों में घिरे अपने मुख्यमंत्री बीएस येदुरप्पा को कड़ी मशक्कत के बाद हटा पाना। कर्नाटक का नाम आते ही जैसे केन्द्रीय नेतृत्व के पसीने छूट जाते हैं। इस बार परेशानी का सबब बनी सत्ता, सेक्स और इस्तीफे की वो फेहरिस्त जिसमें ताजा नाम जुड़ा है कर्नाटक के तीन भाजपाई मंत्रियों कृष्णा पालेमर, लक्ष्मण सावदी और सीसी पाटिल का। जनता की समस्याओं के समाधान के लिए पूरे प्रदेश के विधायक विधान सभा में जब अपने क्षेत्र की दुर्गम तश्वीर बयां कर रहे थे, तब ये तीनों “माननीय” लोकतंत्र के इस पावन मंदिर में अश्लील तश्वीरें देखने में व्यस्त थे। मीडिया ने जब रंगे हाथों धर दबोचा तो बगलें झांकने लगे लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी, पार्टी ने इस्तीफा ले इन्हें मंत्रीमंडल से बाहर का रास्ता दिखा दिया।
इस बाबत जब हमने आरोपी पूर्व महिला एवं बाल कल्यांण मंत्री सीसी पाटिल से बात की तो उन्होंने बेदह चौंकाने वाला जवाब दिया। पाटिल अपनी सफाई में कहते हैं “पहले तो मैं यह साफ कर दूं कि वह कोई अश्लील वीडियो नहीं थी। वह एक रेव पार्टी की वीडियो थी जो मत्स्य मंत्री कृष्णा पालेमर ने कुछ देर पहले दी थी। जिसे देखकर सहकारिता मंत्री लक्ष्मण सावदी से चर्चा कर रहा था कि इस तरह की रेव पार्टियों को कैसे रोका जाये।“
सत्ता, सेक्स और सीडी की फेहरिस्त में सावदी, पाटिल या पालेमर कर्नाटक की भगवा राजनीति का पहला नाम नहीं हैं, इससे पहले साल 2010 में खाद्य मंत्री हरताल हलप्पा को अपने मित्र की पत्नी के साथ बलात्कार करने के आरोप में बेज्जत होना पड़ा था। हलप्पा के मित्र वैंकटेशमूर्ति ने मंत्री पर आरोप लगाया कि वह उनकी पत्नी से बदसलूकी करते हैं लेकिन उनकी गुहार हर किसी ने अनसुनी कर दी। व्यवस्था से हारकर वेंकटेश ने मंत्री की करतूतों की विडियो बनाने की ठान ली। इसी बीच मंत्री दौरे पर आते हैं और वेंकटेश के घर रुकने के साथ ही उनकी पत्नी से बलात्कार करते हैं। जब यह टेप सामने आया तो मंत्री ने राजनीतिक प्रतिद्वंदता करार दे इसे खनन माफिया रेड्डी बंधुओं की साजिश बता डाला।
येदुरप्पा काल में ही एक और मंत्री एमपी रेणुकाचार्य पर एक महिला नर्स एलए जयलक्ष्मी के साथ नाजायज सम्बंध रखने के आरोप लगे। बापू जी आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज, सिमोगा की इस नर्स ने दावा किया कि उसके दोनों बच्चे “माननीय” मंत्री की ही देन हैं। अनैतिकता की पराकाष्ठा तो तब हो गयी जब मुख्यमंत्री येदुरप्पा ने इस मंत्री को बर्खास्त करने के बजाय प्रोन्नत कर कैबिनेट मंत्री बना दिया। नर्स आज भी इंसाफ के लिए कोर्ट-कचहरी के चक्कर काट रही है।
भाजपा के पूर्व थिंक टेंक गोविंदाचार्य कहते हैं कि जनप्रतिनिधि जब सत्ता के नजदीक पहुंचता है तो उसके निरंकुश और दुराचारी होने की संभावनाएं बहुत बढ़ जाती हैं क्योंकि सत्ता की ऐसी ताकत उसने कभी नहीं देखी होती है। दुराचार की इस फेहरिस्त में एक बात सामान्य है कि दुराचारियों का कोई न कोई संरक्षक सत्ता के शीर्ष पर बैठा होता है या फिर वह खुद को सत्ता के साथ सौदेबाजी के लिए सक्षम होता है।
गोविंदाचार्य की नजरों में इस समस्या का हल तभी सम्भव है जब जनता ऐसे दुराचारियों को खुद ही खारिज कर दे क्योंकि उनकी नजर में कानूनी पेचीदगीयां बेहद ज्यादा है और इसका फायदा उठाकर दुराचारी अक्सर बच जाते हैं।
उत्तर प्रदेश की ओर नजर डालें तो गोविंदाचार्य की बातों में काफी हद तक सच्चाई नजर आती है। आजादी के बाद से एक के बाद एक लगातार सत्ता,सेक्स और इस्तीफे का ऐसा दौर कभी नहीं देखा गया जैसा कि बीते एक दशक से इस प्रदेश में देखने को मिल रहा है। इस कलंक कथा की शुरुआत हुई कवित्री मधुमिता शुक्ला कांड से। उत्तर प्रदेश की बसपा सरकार में मंत्री रहे अमरमणि त्रिपाठी पर कवित्री मधुमिता शुक्ला ने शारीरिक शोषण के आरोप लगाये। मामला चर्चा में आने के कुछ दिन बाद वह गायब हो जाती है और उसके परिजन त्रिपाठी पर हत्या कराने का आरोप लगाते हैं। मामला अदालत में पहुंचता है और अमरमणि के साथ-साथ उनकी पत्नी को कवित्री की हत्या का दोषी पाया जाता है। त्रिपाठी की न सिर्फ कुर्सी छिनती है बल्कि सपत्नीक उन्हें लम्बे समय के लिए जेल भी जाना पड़ता है।
बसपा सरकार के ही एक और मंत्री थे आनन्द सेन। खाद्य एवं रसद मंत्री सेन पर वर्ष 2007 में अवध विश्वविद्यालय की एक छात्रा शशि के साथ अवैध सम्बंध बनाने का खुलासा होता है। मधुमिता की तरह शशि भी गायब हो जाती है। सेन के खिलाफ मामला दर्ज होता है और पुलिस उनके घर छापा मारती है, शशि के लिखे कई प्रेम पत्र बरामद करने के बाद प्रेमिका की हत्या के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है।
बसपा सरकार में ही यूपी फिशरीज कॉर्पोरेशन के चेयरमैन राममोहन गर्ग पर भी एक महिला को बंधक बना उसके साथ लगातार पांच साल तक बलात्कार करने का आरोप लगा। वहीं बसपा से बांदा के विधायक पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी पर भी एक नाबालिंग लड़की के साथ बलात्कार का आरोप लगता है, मामला खुला तो उन्हें जेल जाना पड़ा।
इसी बीच बसपा के एक और विधायक योगेन्द्र सागर पर भी स्नातक की एक छात्रा ज्योति को शादी का झांसा देकर बलात्कार करने के आरोप लगे। बदायूं से विधायक सागर के खिलाफ लड़की की शिकायत पर पुलिस ने मामला दर्ज कर तो लिया लेकिन उसे गिरफ्तार करने में पुलिस को एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ा। इस दौर में मानो “माननीयों” के बीच दुराचार मामलों में फंसने की होड़ सी मच गई थी।
बसपा के कदाचारी विधायकों की फेहरिस्त में अगला नाम जुड़ने वाला था डिबाई (बुलंदशहर) के विधायक भगवान शर्मा उर्फ गुड्डू का। गुड्डू पर भी आनन्द सेन और योगेन्द्र सागर की तरह एक छात्रा को शादी का झांसा दे बलात्कार के आरोप लगे। आगरा विश्वविद्यालय की शोध छात्रा शीतल के साथ गुड्डू ने कई बार शारीरिक सम्बंध बनाये और बाद में जब शीतल ने शादी करने के लिए दवाब डाला तो उसे जान से मारने की धमकी दी गयी। शीतल ने पुलिस का दरवाजा खटखटाया लेकिन गुड्डू ने सत्ता की हनक दिखा पुलिस को दबाने की कोशिश की। बाद में जब मीडिया ने पुलिस और गुड्डू की सांठ-गांठ की पोल खोली तो न सिर्फ पुलिस को उसे गिरफ्तार करना पड़ा बल्कि मायावती ने भी पार्टी से बेदखल कर दिया।
संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप कहते हैं कि नैतिक रूप से पतित राजनेताओं की सदस्यता खत्म करने का संविधान में प्रावधान है लेकिन भारतीय लोकतंत्र की कमजोरी कहें या ताकत कि जब तक आरोप सिद्ध नहीं हो जाते तब तक किसी को सजा नहीं दी जा सकती। इसी का फायदा उठाकर शातिर राजनेता अक्सर बच निकलते हैं। इस बीमारी को खत्म करने के लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति की आवश्यक्ता है लेकिन मिली-जुली सरकारों के इस दौर में किसी दल या व्यक्ति से इस तरह की उम्मीद बेमायने है।
इसे राजनीति का घिनौना चेहरा ही कहेंगे कि बसपा से बेदखल किये गये गुड्डू को अपने पाले में लाने की दूसरे राजनीतिक दलों में होड़ सी मच गयी थी। बाजी समाजवादी पार्टी के हाथ लगी और उसे आसन्न विधान सभा चुनाव में प्रत्याशी भी घोषित कर दिया गया।
वर्ष 2005 में जब उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार थी तब एक हाई प्रोफाइल सेक्स, सीडी और हत्या का मामला सामने आया था। मेरठ विश्वविद्यालय की 29 वर्षीय शिक्षिका डॉ. कविता रानी के परिजनों ने मुलायम सिंह सरकार के दो कद्दावर मंत्रियों मेराजुद्दीन और बाबूलाल पर आरोप लगाया कि उन्होंने कविता का शारीरिक शोषण करने के बाद उसकी हत्या करवा दी है। कविता का मोबाइल खंगाला गया तो दोनों मंत्रियों से कई-कई घंटे बात करने के रिकार्ड मिलने के साथ-साथ एक सेक्स सीडी भी बरामद हुई। लोकदल कोटे के दोनों मंत्रियों बाबूलाल और मेराजुद्दीन को बर्खास्त कर दिया गया लेकिन इसी बीच रविन्द्र प्रधान नाम के एक शख्स को पुलिस ने हत्या के इस हाई प्रोफाइल मामले का मुख्य अभियुक्त बता जेल भेज दिया। जहां उसकी संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गयी।
लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी कहते हैं कि लोकतंत्र की स्थापना के शुरूआती दौर में घटे कदाचार के मामले भले ही संख्या में कम और आर्थिक पहलुओं से जुड़े क्यों न हो लेकिन इनका दूरगामी प्रभाव आज की राजनीति में देखने को मिल रहा है। श्री चटर्जी कहते हैं कि यदि लाल बहादुर शास्त्री जी की तरह बाकी राजनेताओं ने भी कदाचार के मामलों में सख्त कदम उठाये होते तो वह एक नजीर साबित होते और आने वाले दिनों में कोई भी इस तरह की भूल करने का जोखिम न उठाता, लेकिन ऐसा न हो सका।
बीते दिनों सुल्तानपुर के सपा विधायक अनूप का मामला भी खासा चर्चा में रहा। ब्यूटीशियन का काम करने वाली एक महिला समरीन ने विधायक पर आरोप लगाया कि वह शादी का झांसा देकर कई सालों से उसका शारीरिक शोषण कर रहे हैं। समरीन ने अनूप के रिश्तों से एक बेटी होने का दावा भी किया लेकिन मामला आपसी रजामंदी से निपटा लिया गया।
इस तरह पैदा हुई संतानों के मामले में कुछ बड़े राजनेताओं ने तो बवाल से बचने के लिए अन्दर खाने उन्हें स्वीकार कर लिया लेकिन कांग्रेस के वयोवृद्ध नेता एनडी तिवारी झुकने को तैयार नहीं दिखते। अदालती आदेशों के बावजूद वह न तो अपना डीएनए सेम्पल दे रहे हैं और ना ही शेखर तिवारी को अपनी संतान मानने को तैयार हैं। ऐसा नहीं है कि तिवारी के खिलाफ यह इकलौता मामला हो। सत्ता, सेक्स और इस्तीफे के इस खेल में वह आंध्र प्रदेश के राज्यपाल रहते हुए भी फंसे थे। 25 दिसम्बर 2009 को हैदराबाद के एक चैनल ने तिवारी को तीन महिलाओं के साथ रंगरेलियां मनाते दिखाया था। यह वीडियो, चैनल द्वारा किये गये एक स्टिंग ऑपरेशन का हिस्सा था लेकिन तिवारी इसे राजनीतिक षणयंत्र बताते रहे। हालाकि यह बात अलग है कि उन्होंने अगले ही दिन यानि 27 दिसम्बर 2009 को पद से इस्तीफा दे दिया।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं केन्द्रीय मंत्री हरीश रावत कहते हैं कि राजनेताओं के नैतिक पतन से न सिर्फ उन्हें समाज में बेज्जत होना पड़ता है बल्कि उनकी पार्टी को भी खासी जलालत झेलनी पड़ती है। श्री रावत कहते हैं कि आरोप लगने के बाद इस्तीफा देना सिर्फ रस्म अदायगी बन गया है। इससे सिर्फ मुंह छिपाया जा सकता है लेकिन जनता की नजरों में राजनीति की गिरती साख को नहीं बचाया जा सकता। इसके लिए जनता को ही आगे आना होगा और चरित्र से कमजोर नेताओं को राजनीति से बेदखल करना होगा।
बीते दिनों राजस्थान की राजनीति में भी सत्ता, सेक्स और सीडी ने जमकर कोहराम मचाया। राजस्थान की लोक गायिका और पेशे से नर्स भंवरी देवी के कई राजनेताओं से अन्तरंग सम्बंध थे, जिनमें से प्रमुख नाम थे प्रदेश सरकार के मंत्री महीपाल मदेरणा और कांग्रेसी विधायक मलखान सिंह। भंवरी ने जब इन लोगों को अपने अंतरंग सम्बंधं की सीडी बनाकर ब्लैकमेल करना शुरू किया तो उसकी हत्या करवा दी गयी। मामला मीडिया में उछला तो प्रदेश सरकार ने सीबीआई को जांच सौंप दी। जांच में दोनों नेताओं और भंवरी के पति सहित 6 लोगों को उसकी हत्या की साजिश रचने का आरोपी पाया गया। मदेरणा ने कांग्रेस मंत्रीमंडल से इस्तीफा दे दिया।
देश के प्रमुख उद्यमी एवं सांसद राहुल बजाज इसके लिए पारदर्शिता की कमी और कानूनी पेचीदगी को जिम्मेदार ठहराते हुए कहते हैं कि यदि बड़े राजनीतिक दलों की कार्यशैली में पारदर्शिता होती तो ऐसे कांड होते ही नहीं। इतना ही नहीं कदाचार के मामलों को सालों लटकाने की बजाय आरोपी को जल्द से जल्द न सिर्फ राजनीतिक मंच से बल्कि समाजिक रूप से भी बहिष्कृत करने की सजा दी जाती तो आने वाली पीढ़ियां ऐसा करने की हिम्मत न जुटा पातीं।
सेक्स और सीडी ने कांग्रेस ही नहीं भाजपा की भी जमकर फ़जीहत कराई। वर्ष 2003 में उत्तराखंड में कांग्रेस नेता और तत्कालीन मंत्री हरक सिंह रावत को भी ऐसे ही मामले में मंत्री पद खोना पड़ा। वहीं भाजपा को सिर्फ कर्नाटक जैसे राज्यों में सीडी कांड नहीं झेलने पड़े बल्कि केन्द्रीय नेतृत्व के हाथ भी सीडी कांड की आंच में झुलस गये। वर्ष 2005 में भाजपा के राष्ट्रीय अधिवेशन के दोरान राष्ट्रीय महासचिव संगठन संजय जोशी के अंतरंग सम्बंधों वाली एक सीडी बांटी गयी। जोशी ने पद से इस्तीफा दे दिया लेकिन बाद में चली जांच में पाया गया कि सीडी फर्जी है। जोशी की वापसी तो हो गयी लेकिन वह पद और प्रतिष्ठा फिर वापस न मिल सकी।
भाजपा नेत्री उमा भारती कहती हैं कि कई मामलों में राजनेताओं को उनके प्रतिद्वंदियों द्वारा फसाया जाता है। इसलिए किसी नेता को आरोप सिद्ध होने तक राजनीति से बाहर नहीं कर देना चाहिए। हां, यदि आरोप सिद्ध हो जाये तो उसके खिलाफ कठोर से कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए और जनता को भी उसका बहिष्कार कर देना चाहिए।
अंततः कहीं तमाचों की गूंज तो कहीं फिकते जूते-चप्पल.... चेहरों पर जब पोती जाने लगे कालिख़ तो भला “माननीय” किस मुंह से कहेंगे कि... दाग अच्छे हैं! देश का संसदीय इतिहास गवाह है कि कथित सफेदपोशों की जमात ने खुद “माननीयों” की साख पर कालिख पोती और काजल की कोठरी कहकर बदनाम राजनीति को किया। जनता ने चुनकर भेजा था विकास की योजनाएं बनाने और उसके हक की आवाज उठाने के लिए लेकिन लोकतंत्र के मंदिर में जब निर्वाचन क्षेत्र की दुर्गम तश्वीर अश्लील वीडियो के नीचे दबा दी जाये तो जनता क्या करे? आवश्यक्ता अविष्कार की जननी है और अविष्कार जन्म लेता है सवालों की कोख से, सवाल अब यही है कि राजनीति के ऐसे दाग कैसे धोये जायें ?
dr.sope se ye daag dhooljayigey(dr.manmohansingh)
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