- तेज धूप थी शायद उस रोज ...
- हां... जून की टीकाटीक दोपहरी थी ...
...शायद, तुम्हारे
केबिन का एसी भी खराब था
उस दिन। फिर, तुम क्यों कांप रहीं थीं ?
- तुम्हें कैसे पता ?
- देख रहा था तुम्हारे
पैरों की जुम्बिश...
कंपकंपाते हाथ...
- कुछ बोले क्यों नहीं
?
- कैसे बोल देता...
कुछ अजीब सा एहसास था... समझने की कोशिश कर रहा था... उस तड़पन को...
...जो तुम्हारे जिस्म से लेकर मेरी धड़कनों तक को समंदर की मानिंद उफनने को मजबूर कर रही थी।
...जो तुम्हारे जिस्म से लेकर मेरी धड़कनों तक को समंदर की मानिंद उफनने को मजबूर कर रही थी।
- ओह माई गॉड! तो तुम्हें पता चल
चुका था...
- हां शायद, लेकिन
नहीं समझ पा रहा था तो बस इतना कि आखिर ये है क्या,.... वही जो मैं समझ रहा हूं...
या मेरा कोई वहम... कई रोज गुजर गए...इस सवाल का जवाब तलाशने में ।
एक दिन बाद अचानक
एफबी पर तुम्हारी फ्रेंड रिक्वेस्ट देख धड़कनें फिर से बेकाबू हो उठीं.... बावजूद
इसके नहीं समझ आया कि आखिर हो क्या रहा है...
कबीर का दिल वाकई में जोरों से धड़कने लगा... इतना तेज कि नर्स, डॉक्टर और सारे तीमारदार आ जुटे।
उखड़ती सांसों से उसने सबको दिलासा दिया... यार इतनी आसानी से नहीं मरूंगा... सारी
बददुआएं कबूल हों, इसी दुआ में मेरा हर एक लम्हा गुजरा है। सफेद चोगे में लिपटा शख्स, काशी के घाट का यार डॉक्टर राजेश चीख पड़ा... कमाल करते हो यार, मरने की इतनी जल्दी क्यों है तुम्हें... थोड़ा
रुको बाहर तेज बारिश हो रही है... यमराज का भेंसा फिसल जाएगा... नहीं लाद पाएगा
तुम्हारे जैसे कमजर्फ का बोझ...
सही कह रहे हो
प्यारे, यही सुनना बाकी रह गया था... कमजर्फ
!
उस रोज भी कुछ ऐसा
मंजर था... जब आखिरी बार तुमने मेरे दरवाजे पर दस्तक दी थी... याद है ?
... तमन्ना ने माहौल की तल्खी को कुछ कम करने की कोशिश की।
... तमन्ना ने माहौल की तल्खी को कुछ कम करने की कोशिश की।
हां, याद है... भला
कैसे भूल सकता हूं... उस रात को... आखिरी रात थी मेरी तमन्नाओं की... नहीं भूल
सकता कि मैं दरवाजे पर दस्तक दे रहा था और तुम उस ओर खड़ी आंसुओं के सैलाब में बहे
जा रहीं थीं। कैसे भूल सकता हूं उन दर-ओ-दीवारों को... तुम्हें लगा मैं चला गया,
लेकिन मैं वापस लौटा था... महज यह देखने के लिए कि कोई खुद से ऐसे कैसे लड़ सकता है...डोरवेल की पहली घंटी तो तुमने अनसुनी कर दी थी... लेकिन दूसरी बार बजी तो तुम्हारे कदम
साथ छोड़ चुके थे... पसीने में भीगा बदन अचानक उठ खड़ा हुआ ... हाथ दौड़ पड़े थे
दरवाजा खोलने के लिए... वैसे साथ तो तुम्हारे दिल ने भी नहीं दिया था... तीन के
बजाय सिर्फ एक ही लॉक लगा सकीं थी उस रात तुम...
कबीर की सासें फिर
उखड़ने लगीं... सन्नाटे में महज उसकी और तमन्ना की धड़कनें सुनाई दे रहीं थी...
कबीर ने खुद पर काबू
पाया और फिर डूब गया उस रेशमी रात के आगोश में...
तमन्ना... रो-रो कर
गुजारी थी ना वो पूरी रात तुमने...या फिर तुम्हें उस सवाल का जवाब मिल गया था जो
तुमने मुझे मैसेज किया था... कबीर, खुद से दूर जाने का रास्ता बता दो... यही पूछा
था ना...
इन सवालों के जवाब न
थे और शायद न होंगे... पल्स रेट बता रही मशीन की महीन आवाज तो कुछ यही कह रही थी..
हां कबीर...। तमन्ना की
गमजदा आह से टूटा कई लम्हों तक चला सन्नाटा।
बहुत रोई थी... दिल
तो किया मर जाऊं, लेकिन हिम्मत न जुटा सकी। तुम्हें देखते रहने की चाहत ने
कम्बखत मरने भी न दिया। दिल डूब चुका था... जिस्म साथ छोड़ चुका था... आंसुओं की धार
और हूक दर उठती हूक के सिवाय कुछ न था... कई घंटों तक रहा यही आलम... बेसुध होकर
पड़ी रही उसी दरवाजे के पास ठंडे फर्श पर... और महसूस करती रही तुम्हारी मौजूदगी
का हर कतरा। जानते हो जब तुम्हारी बाइक की आवाज सुनी तो बेसुध होकर दौड़ पड़ी थी
बालकनी की ओर... दरवाजे से टकराई,,, गिरी... फिर उठी... तो बस ग्रिल का टूटना बाकी
बचा था... नहीं तो गिर ही पड़ती तुम्हारे आगे... बस यही समझाने को कि... तुम जा तो रहे
हो... लेकिन मुझे मार कर।
पूरा अस्पताल आसुओं
के सैलाब में डूब कर बह जाता... इससे पहले कबीर ने पतवार अपने हाथ में थामने की नाकामियाब कोशिश की...वह भूल गया था जिंदगी का फलसफा.. कि जब दरिया उफान पर हो तो खामोशी अख्तयार कर
किनारे तक पहुंचने का इंतजार करना चाहिए... नहीं तो ऐसे भंवर उठते हैं कि महज
डूबना छोटा लगने लगता है।
अच्छा एक बात
बताओ...त्रिपाठी और शालिनी के इनबॉक्स में तुमने ऐसा क्या देखा जो मेरी वफा से
भरोसा उठ गया....
सवाल बे वक्त और वाहियात
था... लेकिन, जब तक यह समझ आया देर हो चुकी थी...
चौंक पड़ी थी
तमन्ना... क्या तुम्हें नहीं पता क्या लिखा था तुमने... जुगाड़... यही शब्द
इस्तेमाल किया था ना मेरे लिए... क्या शालिनी को भी ऐसे ही बुलाते थे...
पलटवार को कबीर
तैयार न था... तमन्ना ने उसके जवाब का इंतजार किए बगैर ही फिर सवाल दर सवाल दाग
डाले...
शालिनी के इन बॉक्स
में तो तुमने यही लिखा था... कि मल्टीपल रिलेशन में हूं मैं... कई लोगों के साथ
रिश्ते हैं मेरे... बस वैश्या नहीं बोला कबीर तुमने मुझे...लेकिन साबित तो यही
करने की कोशिश की थी... प्यार किया था मैने तुमसे... आखिरी इंसान जिस पर भरोसा
हुआ... जिससे प्यार हुआ...
अब सदमे में आने की
बारी कबीर की थी...ओह माई गॉड... तुमने उस मैसेज को खुद से जोड़ लिया था तमन्ना...
वो तुम्हारे लिए नहीं था... और मैं ऐसा सोच भी कैसे सकता हूं...
तो फिर किसके लिए
था... वो तमन्ना ने एक और सवाल दागा
उस औरत के लिए जो
चार बच्चों की मां होने के बावजूद मुझसे इश्कफरमा थी... मेरे दुत्कारने के बावजूद
मेरे दामन से चिपकना चाहती थी...घर, गली-मुहल्ला तो छोड़ो फोन नंबर. पता और न जाने
क्या-क्या बदलना पड़ा था उसके लिए...
और रही बात त्रिपाठी
की तो... हां मैने लिखा था उसकी वॉल पर तुम्हें अपनी जुगाड़... सैटिंग... सिर्फ इसलिए कि इन उखड़ती
सांसों और टूटती धड़कनों को जिंदगी जीने का जुगाड़ मिला था... तुम्हें देख कर मौत
को मात देने की ख्वाहिश हुई थी और खुदा से सैटिंग में जुटा था... इसलिए बोला
ऐसा... लेकिन तुम्हें तो फैसले करने की आदत है... करो... अपना सब कुछ सौंप दिया...
सिवाय विश्वास के... एक बार मुझसे भी तो पूछा होता... यकीं तो किया होता मेरे
प्यार पर... लेकिन नहीं... तुम्हें तो जाने की जल्दी थी ना... कभी न्यूयार्क...
कभी सिंगापुर तो कभी वासिंगटन डीसी... विदेश से नीचे उतरतीं तो कभी दिल्ली... कभी
केरल और फिर कभी जयपुर-उदयपुर और जोधपुर...
मुझे लगा कि तुम दूर
जाना चाहती हो मुझसे... क्योंकि मैं तुम्हारे काबिल नहींहूं... और हकीकत भी तो यही
थी कि दोहरी जिदगी जी रहीं थीं तुम मेरे साथ... खुश थीं लेकिन हर पल खुद से
जद्दोजहद कर रहीं थीं...
कितनी बार कहा था
तुमसे कि मुझे कुछ कहना है... लेकिन एक बार भी मौका नहीं दिया... पता है उस रात जब
मैं तुम्हारे कांधे पर सर रखकर सोया था... वो आखिरी रात थी जब मैने आंख मूंदी
थी...उसके बाद आज तक नहीं सो सका हूं रातों में... डर लगता है मुझे अकेले सोने
में... डरता हूं कि कहीं मेरी मनहूस नींद सुबह होने पर कुछ और न छीन ले जाए...
लेकिन तमन्ना ये भी हकीकत है कि मैने तुम्हें खुद ... खुद से दूर किया है...
तुम खुद सोचो क्यों
मांगा था तुम्हारा लैपी... एफबी या मेल चेक करने को... नही रे बाबा... तुम्हें
अच्छे से पता है कि मैं हर वक्त मोबाइल पर ऑन लाइन रहता हूं... मेरी जान तमन्ना
तुम्हारी सिर्फ तीन कमजोरी है और वो है डर... अविश्वास और खुद को दूसरों से कमतर
मानना। इन्हीं का फायदा उठाया था मैने उस दिन... मुझे पता था... तुम्हारा रिएक्शन
ऐसा ही होगा त्रिपाठी के मैसेज पढ़कर।
कबीर को बीच में
टोकते हुए तमन्ना ने एक और सवाल दागा... फिर उस रात तुम मुझसे मिलने दोबारा क्यों
आए...
तुम्हें खो तो चुका
था... लेकिन दूर जाना खासा मुश्किल था... ये जानते हुए भी कि कैंसर का मरीज ज्यादा
से ज्यादा साल दस साल तक ही जिंदगी खींच सकता है। एक डर यह भी कि कहीं तुम खुद को
कोई नुकसान पहुंचा लो.. जैसी कि तुम्हारी आदत थी... और असल बात यह कि जिंदगी से
ज्यादा चाहने लगा था तुम्हें। मरने का गम नहीं था, लेकिन तुमसे जुदाई का डर चैन से
मरने भी नहीं दे रहा था।
...........तुमने तो
बंद कर लिए थे दरवाजे इश्क के...लेकिन तुम्हारी याद तो दरारों से भी चली आती थी।
चलती हूं अब... बहुत
वक्त हो गया... बेटी को भी स्कूल से लेना है... जयंत भी घर पहुंचने वाले होंगे...
तमन्ना को अचानक
खड़ा होता देख कबीर का दिल बैठ गया... लेकिन अब वक्त उसके हाथ से रेत की मानिंद
खिसक चुका था... बस इतना ही कह सका... पता नहीं दोबारा तुमसे मुलाकात हो या न हो...
अपना ख्याल रखना और हां... अब मुझे भूल जाना...
तमन्ना ने कुछ सुना
या नहीं... कबीर तय नहीं कर सका...
डॉक्टर राकेश...
राकेश.... बदहवास सा कबीर चिल्लाए जा रहा था... राकेश को लगा शायद अब कबीर की दिली
और जिस्मानी तकलीफों से रिहाई मुकर्रर हो गई... गिरते पड़ते ... बदहवास दौड़ता
कबीर तक जा पहुंचा....
क्या हुआ मेरे
भाई... कोई तकलीफ ....
हां है राकेश बहुत
बड़ी तकलीफ... देखो जो लड़की मेरे साथ बैठी थी अभी... नीले सूट में वो बाहर गई
है... जरा उसे संभालना... कई दरवाजों से टकराएगी... लिफ्ट में फंस जाएगी... फिर
खुद गाड़ी चलाकर आई होगी तो कई जगह टकराएगी... गिरेगी चोट खा जाएगी....
राकेश समझ नहीं सका
कि कबीर क्या बोल रहा है... लेकिन वो दौड़ पड़ा कबीर की अधूरी तमन्नाओं के पीछे...
हुआ भी यही। आखिर में तमन्ना के कदम जब साथ छोड़ गए तो उसने अस्पताल के बाहर पड़ी
बैंच पर बैठना ही मुनासिब समझा। राकेश ने उसे सहारा दिया... टैक्सी बुलाई और घर तक
छोड़ आया।
तभी उसके जेहन में
सवाल कौंधा... आखिर कबीर भविष्य कबसे देखने लगा... मौत से पहले कोई नया करिश्मा तो
नहीं... खुद को नहीं रोक सका पूछने से।
यार कबीर तुम्हें
कैसे पता चला कि उस लड़की के साथ यही सब होने वाला है...
राकेश, क्योंकि उस
रात मेरे साथ भी यही हुआ था...। अवाक था राकेश... तो ये तमन्ना थी... कबीर कुछ
नहीं बोला... बस साथ छोड़ चुकी उस बंद घड़ी को एक टक देखते हुए.. मानिंद होती अपनी
धड़कनों को गौर से सुनता रहा...
हां मेरे दोस्त अब शायद वो मुझे भूला पाएगी। यही
वो मेरी अधूरी कहानी है, जिसे मैने खुद खुद से अलग किया था। मेरी तमन्ना...।
for time pass it is ok
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