संस्कृति के संरक्षण का दावा करने वाली सरकार संस्कृत की पढ़ाई को खत्म करने में जुटी है। संस्कृत व्याकरण, ज्योतिष और साहित्य के शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हाड़ौती के इकलौते संस्कृत महाविद्यालय से उच्च शिक्षा विभाग ने एक पद और खत्म कर दिया। जिसके बाद महाविद्यालय में स्नातकोत्तर स्तर के छात्रों को पढ़ाने के लिए एक भी शिक्षक नहीं बचा है।
प्रदेश में सबसे पुराने संस्कृत महाविद्यालय को कोटा दरबार ने 118 साल पहले शुरू किया था। वर्तमान में संस्कृत साहित्य के साथ-साथ ज्योतिष और संस्कृत व्याकरण का सबसे बड़ा महाविद्यालय अब शिक्षकों की कमी से जूझ रहा है। महाविद्यालय में स्नातक स्तर पर चार शिक्षक हैं, लेकिन स्नातकोत्तर स्तर पर सिर्फ संस्कृत साहित्य के ही शिक्षक छात्रों को पढ़ा रहे थे। सात अक्टूबर को सरकार ने प्राचार्य के तबादले के साथ ही संस्कृत साहित्य का पद भी खत्म कर उदयपुर संस्कृत महाविद्यालय में ट्रांसफर कर दिया। वहीं ज्योतिष, भाषा विज्ञान और व्याकरण के व्याख्याताओं के पद पिछली सरकारों में ही खत्म किए जा चुके हैं।
मूलभूत सुविधाएं तक नहीं
संस्कृत महाविद्यालय में हजारों साल पुरानी ज्योतिष और संस्कृत व्याकरण से जुड़ी पांडुलिपियां संरक्षित हैं, लेकिन उनके डिजिटलाइजेशन और रखरखाव के लिए एक भी कर्मचारी तैनात नहीं है। जैन दर्शन पर स्ववित्त पोषित योजना में पाठ्यक्रम संचालित होता है, लेकिन उसके लिए भी शिक्षकों की तैनाती नहीं की जा रही। क्लासरूम की कमी दूर करना तो बड़ी बात है सरकार छात्राओं के लिए शौचालय बनवाने तक को राजी नहीं है। महाविद्यालय प्रशासन की ओर से मूलभूत सुविधाएं विकसित करने के लिए पीडब्ल्यूडी की ओर से सवा पांच करोड़ रुपए का एस्टीमेट बनाकर सरकार को भेजा गया था, लेकिन उसे मंजूर करना तो दूर की बात अफसरों ने देखना तक उचित नहीं समझा।
कैसे होगी पढ़ाई
नया शैक्षणिक सत्र में 319 छात्रों ने कॉलेज में प्रवेश लिया है, लेकिन कॉलेज में साहित्य, व्याकरण और ज्योतिष पढ़ाने वाले शिक्षक ही नहीं बचे। ऐसे में छात्रों को अपने भविष्य की चिंता सता रही है। वे महाविद्यालय परिवर्तित कराना चाहते हैं, लेकिन उनके विषयों की पढ़ाई जयपुर से पहले कहीं नहीं हो रही।
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