चुनावी घमासान ने गधों को भले ही चर्चा में ला दिया हो, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि दुनिया का सबसे मेहनती जानवर विलुप्त होने की कगार पर खड़ा है। पूरे देश में गधे की आबादी महज 3.19 लाख ही रह गई है। जिसमें से 1.86 लाख नर और 1.33 लाख मादाएं हैं। राजस्थान में तो यहां नौ साल में आबादी आधी हो गई।
राजस्थान के नागौर, पुष्कर, बाड़मेर और झालावाड़ की पहचान दुनिया के सबसे बड़े गंदर्भ मेलों के आयोजन के लिए होती है। पिछले 500 साल से देश ही नहीं दुनिया भर के लोग यहां गधों की खरीद-फरोख्त करने आते हैं, लेकिन इसे विडंबना ही कहेंगे कि इन सबके बावजूद प्रदेश में गधों की आबादी तेजी से घट रही है।
सितंबर 2016 में जारी हुए 19वीं पशुगणना के आंकड़ों पर नजर डालें तो बेहद चौंकाने वाली हकीकत सामने आती है। 17 वीं पशुगणना के दौरान राजस्थान में गधों की कुल आबादी 1.43 लाख थी। जो नौ साल बाद हुई 19वीं पशुगणना में घटकर करीब आधे यानि 81.47 हजार ही रह गई। चिंता का सबब यह है कि गधों का लिंगानुपात भी तेजी से बिगड़ रहा है। 17 वीं पशु गणना में मेल गधों से फीमेल की संख्या महज चार हजार कम थी, लेकिन 19वीं पशुगणना में यह बढ़कर करीब आठ हजार तक पहुंच गई।
विलुप्त हो जाएंगे खच्चर
19वीं पशु गणना के मुताबिक राजस्थान में महज 3,375 खच्चर ही बचे हैं। जिसमें तीन साल से कम उम्र के सिर्फ 1053 खच्चर ही हैं। वहीं दूसरी ओर सूबे में खासी मांग होने के बावजूद घोड़ों की संख्या भी 37,776 ही रह गई है। हालांकि अच्छी बात यह है कि इनका लिंगानुपात गधों से बिल्कुल उलट है। पशुगणना के मुताबिक प्रदेश में घोड़ों की संख्या 12,282 ही है जबकि घोडिय़ों की संख्या उनसे दुगनी यानि 25,494 हैं।
सबसे ज्यादा गधे बाड़मेर में
19वीं पशुगणना के मुताबिक प्रदेश में सबसे ज्यादा 17,495 गधे बाड़मेर जिले में हैं। जिनमें से 8776 फीमेल और 8719 मेल हैं। वहीं सूबे में सबसे कम गधे 268 टोंक जिले में हैं। जिनमें 103 फीमेल और 117 मेल हैं।
विदेशी गधे भी हैं राजस्थान में
पोयटू, गुजराती और हरियाणी के साथ-साथ देशी नस्ल ही नहीं विदेशी नस्ल के इटेलियन और फ्रांसिसी गधे भी मौजूद हैं। बीकानेर के पशु वैज्ञानिक तो फ्रांसिसी गधों की संकर प्रजाति भी तैयार करने में जुटे हैं।
मशीनीकरण ने घटाया कुनबा
घटती आबादी की वजह पशुपालन विभाग के सेवनिवृत निदेशक वीके शर्मा गधे और खच्चर की घटती आबादी के लिए मशीनीकरण को जिम्मेदार ठहराते हुए कहते हैं कि जैसे-जैसे छोटे लोडिंग व्हीकल का बाजार बढ़ता गया। घुमंतु और पारपंपरिक जातियों ने गधे ही नहीं खच्चर पालना भी बंद कर दिया। किसी दौर में घोड़ा राजस्थानी लोगों के लिए राजसी ठाट-बाट का प्रतीक था, लेकिन मंहगाई के चलते लोगों ने इसे पालना बंद कर दिया। बस अब तो इसका इस्तेमाल शादियों तक ही सीमित हो कर रह गया है।
ऐसे होती है पशुगणना
जिस तरह मनुष्यों की आबादी का आंकलन करने के लिए जनगणना कराई जाती है। उसी तरह पशु-पक्षियों की संख्या पता करने के लिए कृषि मंत्रालय का डिपार्टमेंट ऑफ एनीमल हसबेंड्री, डेयरिंग एंड फिशिरीज पशुगणना कराता है। भारत में वर्ष 1919 से हर पांच साल में एक बार पशुगणना कराई जाती है। आखिरी पशुगणना (19वीं) वर्ष 2012 में करवाई गई थी। जिसके आंकड़े सितंबर 2016 में जारी हुए। हालांकि राजस्थान राज्य के आंकड़े इस साल जनवरी में जारी हो सके हैं।
सूबे में गधों की आबादी (हजार में)
पशु संगणना - 17वीं - 18वीं - 19वीं
मेल - 73.00 - 53.88 - 44.72
फीमेल - 69.00 - 48.25 - 36.74
कुल - 143.00 - 102.13 - 81.47
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