नेशनल इंस्टीट्यूटशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) में ए और बी कैटेगरी हासिल करने वाले उच्च शिक्षण संस्थानों को मानव संसाधन विकास मंत्रालय पूर्ण स्वायत्तता देगा। इन संस्थानों को अपनी मर्जी के मुताबिक पाठ्यक्रम तैयार करने, उसे लागू कराने और परीक्षाएं कराने समेत इस काम पर आने वाला खर्च भी अपनी मर्जी से करने की इजाजत दी जाएगी। जिसके बाद शिक्षाविदों में एक बार फिर बहस छिड़ गई है।
विश्वविद्यालय स्थापना नियमों के मुताबिक देश के सभी विश्वविद्यालयों को पाठ्यक्रम बनाने और उसे क्रियान्वित करने समेत आर्थिक संसाधन जुटाने और खर्च करने की स्वायत्तता दी गई है, लेकिन कभी यूजीसी की मॉनीटरिंग तो कभी वित्त विभाग के आदेशों के बहाने सरकार हमेशा इसमेें सेंध लगाती रहती है। 90 के दशक में इसी स्वायत्तता को कॉलेज स्तर पर लागू करने के लिए राजकीय महाविद्यालयों को भी राजस्थान में स्वायत्त घोषित किया गया। कोटा का राजकीय महाविद्यालय भी इसमें शामिल था। स्वायत्तता के नाम पर पढ़ाई से लेकर परीक्षा और खर्चे के भी अधिकार कॉलेजों को दिए जाने थे, लेकिन एक ही साल में यह स्वायत्तता धराशाई हो गई और सरकार को अपना आदेश वापस लेना पड़ा, लेकिन राज्य विश्वविद्यालय अपनी स्वायत्तता में दखल का लगातार विरोध करते रहे। जिसके बाद मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने एक बार फिर उच्च शिक्षण संस्थानों को पूर्ण स्वायत्तता देने का सिगूफा छेड़ दिया है।
एनआईआरएफ दिखाएगा रास्ता
मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से जारी सर्कुलर के मुताबिक एनआईआरएफ में ए रैंक हासिल करने वाले उच्च शिक्षण संस्थानों को पूर्ण स्वायत्तता दी जाएगी। पढ़ाई, परीक्षा से लेकर अपनी मर्जी से पैसा खर्च करने तक की इजाजत। वहीं बी कैटेगरी हासिल करने वाले संस्थानों को पहले शैक्षणिक स्वायत्तता लेकर खुद को साबित करना होगा। इसके बाद ही उनको आर्थिक स्वायत्तता देने पर विचार किया जाएगा। हालांकि सी कैटेगरी हासिल करने वाले और एनआईआरएफ की लिस्ट में शामिल न हो सकने वाले शिक्षण संस्थानों को सरकारी कानूनों के शिकंजे में ही रखा जाएगा। ताकि उनकी गुणवत्ता सुधारी जा सके।
उठने लगे सवाल
मानव संसाधन विकास मंत्रालय दूसरी बार एनआईआरएफ के लिए पंजीकरण करवा रहा है, लेकिन कोटा से सिर्फ कोटा विश्वविद्यालय ने ही इसके लिए पंजीकरण किया है। जबकि राजस्थान तकनीकि विश्वविद्यालय, वीएमओयू और कृषि विश्वविद्यालयों की बात तो छोडि़ए किसी भी राजकीय महाविद्यालय ने इसके लिए आवेदन करने तक की जरूरत नहीं समझी। शिक्षाविदों को इसके साथ ही एनआईआरएफ के जरिए रैंक देने के तरीके पर भी सवाल उठाए हैं। पहली बार जारी की गई रैंक में कोटा विश्वविद्यालय समेत तमाम शिक्षण संस्थानों ने फर्जी आंकड़े प्रस्तुत किए थे। जिनकी जांच तक नहीं की गई। शिक्षाविदों का कहना है कि सरकार पहले रैंक देने का तरीका सुधारे उसके बाद स्वायत्तता का सिगूफा छोड़े।
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