• खोट ईवीएम में नहीं, नेताओं की नीयत में है

    15 वीं लोकसभा के लिए वर्ष 2009 में हुए चुनावों ने ईवीएम पर पहली बार व्यापक पैमाने पर सवाल खड़े किए थे... एक ही लोकसभा सीट से लगातार छह बार चुनाव जीत चुके संतोष गंगवार इस बार अपना सातवां चुनाव हार गए... इसी साल फिरोजाबाद से रिकॉर्ड मतों से जीतने वाले अखिलेख यादव के सीट खाली करने के बाद हुए उप चुनावों में डिम्पल यादव अपना पहला चुनाव बहुत बुरी तरह हार गईं... हालांकि लोकसभा चुनाव में दूसरी बार इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का इस्तेमाल हो रहा था...लेकिन, जब सूचना के अधिकार में बरेली और फिरोजाबाद लोकसभा सीट पर हुए मतदान की बूथबार जानकारी जुटाई गई तो ईवीएम सवालों के घेरे में खड़ी थी... हाल में संपन्न हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों की तरह जो लोगउस वक्त हार गए थे, वह ईवीएम को ही इसके लिए जिम्मेदार ठहरा रहे थे... आज भाजपा और मोदी पर उंगली उठाई जा रही है, उस वक्त निशाने पर कांग्रेस और सोनिया गांधी थे...

    सूचना के अधिकार का नया-नया प्रयोग शुरु हुआ था। बस हर कोई भारत निर्वाचन आयोग से सवाल पूछने में जुटा था। आयोग के अफसर इन सवालों को देख घबड़ा रहे थे। इसका अंदाजा मेरे सवाल से लगाया जा सकता है। मैने बरेली और फिरोजाबाद सीट के बूथवार नतीजे मांगे थे, लेकिन आयोग ने मेरे पत्र को सभी राज्य निर्वाचन आयोगों के पास भेज दिया और उन्होंने जिला निर्वाचन अधिकारियों को। नतीजन करीब तीन साल तक मेरे घर इतनी चिट्ठियां आईं, कि पोस्टमैन रास्ता पूछना भूल गया। बावजूद इसके ईवीएम का भूत पकड़ में नहीं आ रहा था। आईआईटी दिल्ली से लेकर रुड़की और भेल से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स इंडिया के अफसरों तक से व्यक्तिगत मुलाकात की। ईवीएम को हैक करने के जितने दावे सामने आते गए उतने ही उसे टेंपर प्रूफ बनाने के सबूत भी मिलते गए। बावजूद इसके सवाल वहीं का वहीं था कि आखिर मतपत्र के आदिम युग की ओर लौटे बिना ईवीएम को और सशक्त कैसे बनाया जा सकता है। सबसे पहला सुझाव बड़े भाई सुधीर पाठक जी ने दिया कि हमें वोट डालने का कोई सबूत मिलना चाहिए। जिसके जवाब में बड़े भाई प्रमोद गुप्ता जी ने एटीएम का उदाहरण पेश किया कि जब पैसे निकालते हैं तो उसके बदले एक पर्ची निकलती है। ऐसे ही वोट डालने पर भी पर्ची निकले और हमें यकीन हो सके कि हमारा वोट उसी शख्स को मिला है जिसके चुनाव चिन्ह का हमने ईवीएम में बटन दबाया है। हालांकि सुधीर पाठक जी ने एक शंका व्यक्त की कि एटीएम की पर्ची का प्रिंट कुछ दिन बाद उड़ जाता है। सुधार की बड़ी कल्पना हमारे सामने थी, लेकिन निर्वाचन आयोग इसके लिए राजी नहीं हुआ तो हमने सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला किया, लेकिन इसी बीच ईवीएम पर आ रही अटपटी जनहित याचिकाओं से परेशान होकर सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं पर जुर्माना लगाना शुरू कर दिया था। सुब्रहमण्यम स्वामी जैसे विद्वान भी इसका शिकार बने तो मेरी हिम्मत थोड़ी टूटी, लेकिन पाठक जी ने हौसला दिखाया। उन्होंने वकील और कोर्ट फीस के साथ-साथ जुर्माना लगने की स्थिति में उस रकम को भी वहन करने की जिम्मेदारी लेने की हामी भरी। गुप्ता जी भी पीछे नहीं हटे और वह भी इस यज्ञ में साझीदार हो गए।
    ईवीएम में सुधार करने और मतदान के बाद पर्ची निकलने की मांग को लेकर मैने दिसंबर 2009 में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की। जिस पर एक फरवरी 2010 को सुनवाई हुई। जुर्माने और सजा की आशंका से सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर रखा गया मेरा पहला कदम बेहद सहमा हुआ था, लेकिन जब कोर्ट ने मेरी याचिका को मंजूर करते हुए निर्वाचन आयोग को मेरी शंकाओं का समाधान करने एवं पर्ची की व्यवस्था करने का निर्देश दिया तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा। हमारे वकील विवेक शर्मा जी तो खुशी से उछल ही पड़े। यहां से हुई शुरुआत इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में पेपर ट्रेल लगाने की। इस लड़ाई में नौकरी गंवानी पड़ी। तमाम अपनों ने साथ छोड़ा। कुछ ने तो याचिका की कॉपी तक राजनैतिक दलों को बेच डाली। खैर अंत भला तो सब भला। जब तक दिल्ली रहा तब तक पेपर ट्रेल को फॉलो किया। नई नौकरी ने शहर छुड़वाया। व्यस्तताएं बढ़ाई। जख्म भरे और शायद पेपर ट्रेल भी भुला दिया। आलम ये था कि इस दौरान कुछ खबरें छपी थीं,लेकिन मेरे पास एक भी नहीं थी। पुराने साथियों ने यूपी के पूरे विधानसभा चुनावों में उन्हें तलाशा, तब जाकर दो आज ही मिल पाई हैं।
    शुक्रिया आशीष इन्हें संभालकर रखने के लिए। काश तुम्हारी तरह दंभ में डूबे यूपी के नेताओं को भी ईवीएम में पेपर ट्रेल लगाने की याद रही होती तो आज ईवीएम पर सवाल उठाने के बजाय चुनाव से पहले सभी जगह पेपर ट्रेल लगाने की मांग कर लेते। लेकिन, जो भी हुआ अच्छा हुआ। कम से कम इस वक्त वह ईवीएम की आड़ में मुंह तो छिपा पा रहे हैं। यदि पेपर ट्रेल लग जाता तो उन्हें यह मौका भी नहीं मिलता। सच्चाई तो यही है कि खोट ईवीएम में नहीं नेताओं की नीयत में है। उसकी जांच के लिए कौन सा पेपर ट्रेल लगवाया जाए। सोचिए सुधीर-प्रमोद भैया। नई जनहित याचिका दायर करनी है।


    - https://goo.gl/uXzPta

    - https://goo.gl/M24zEJ











  • 0 comments:

    एक टिप्पणी भेजें

    https://www.facebook.com/dr.vineetsingh

    Freedom Voice

    ADDRESS

    Kota, Rajashtan

    EMAIL

    vineet.ani@gmail.com

    TELEPHONE

    +91 75990 31853

    Direct Contact

    Www.Facebook.Com/Dr.Vineetsingh